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भील प्रदेश की मांग ने पकड़ा जोर, BTP के साथ आए कई आदिवासी संगठन

राजस्थान में आदिवासी संगठनों ने आदिवासी उप-योजना (TSP) के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में सात जिलों की 165 से अधिक ग्राम पंचायतों को शामिल करने की मांग की है. इस कदम से स्थानीय समुदायों को लघु खनिजों और लघु वन उपज के साथ-साथ विकास गतिविधियों पर नियंत्रण की सुविधा मिल सकेगी. साथ ही ये आदिवासी आबादी की वैधानिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगा.

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी समूहों ने कहा कि इन पंचायतों में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 50 फीसदी को पार कर गई है, जिससे वे अनुसूचित क्षेत्र घोषित होने के योग्य हो गए हैं. नतीजतन पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधान इन क्षेत्रों पर लागू होंगे.

मौजूदा वक्त में अनुसूचित क्षेत्रों में दक्षिणी राजस्थान में 5,697 गांव शामिल हैं, जिनकी आदिवासी आबादी 50 फीसदी से अधिक है, जैसा कि 2018 में अधिसूचित किया गया था. 2011 की जनगणना के मुताबिक अनुसूचित क्षेत्रों की कुल जनसंख्या 64.63 लाख थी, जिसमें आदिवासी 45.57 लाख थे.

भील आदिवासी (Photo Credit: Twitter)

भील प्रदेश की मांग

साथ ही राजस्थान में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में जनजाति समुदाय का एक धड़ा लंबे समय से भील प्रदेश की मांग कर रहा है.

इसके चलते भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा, भारतीय ट्राइबल पार्टी सहित कई सामाजिक-राजनीतिक संगठन मजबूत हुए हैं. जो 4 प्रदेशों के 42 जिलों के अनुसूचित क्षेत्रों को मिलाकर अलग भील प्रदेश की मांग कर रहे हैं.

ये लोग चाहते हैं कि जिन जगहों से भील समुदाय के लोगों को भगा दिया गया था वहां पर उन्हें वापस बसाया जाए ताकि ये लोग अपने अधिकारों और पहचान को दोबारा प्राप्त कर सकें.

इस क्षेत्र की आबादी सवा करोड़ से भी ज्यादा है. इसमें राजस्थान में 28 लाख, गुजरात में 34 लाख, महाराष्ट्र में 18 लाख और मध्य प्रदेश में लगभग 46 लाख की जनसंख्या शामिल हैं. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 244 और सन् 1913 के मानगढ़ में गुरु गोविंद गिरी के आंदोलन का हवाला दिया जाता है. इसी बीच संसद-विधानसभा से लेकर सामाजिक मंचों पर लगातार यह मांग उठती रही है.

2017 में भारतीय ट्राइबल पार्टी का हुआ गठन

दरअसल, उत्तर प्रदेश के इटावा में जन्मे मामा बालेश्वर दयाल ने भील आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन की लड़ाई के लिए एकजुट किया. इनका प्रभाव MP के सटे इलाकों में रहा है. वहीं साल 1977-84 के दौरान मध्य प्रदेश से चुने जाने के बाद राज्यसभा में जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व भी किया.

साथ ही दाहोद (गुजरात) से लोकसभा सांसद रहे सोमजी भाई डामोर ने भील प्रदेश का अलग नक्शा दिया तो इसी मांग को लेकर 2013 में जांबूखंड पार्टी और फिर 2017 में भारतीय ट्राइबल पार्टी का गठन हुआ.

भील आदिवासी (Photo Credit: Twitter)

RSS लगातार कर रहा विरोध

इसके राष्ट्रीय संरक्षक गुजरात विधानसभा सदस्य छोटू भाई वसावा है. फिलहाल पार्टी से गुजरात-राजस्थान में दो-दो विधायक हैं. हालांकि इस मांग का आरएसएस लगातार विरोध करता रहा है. इस क्षेत्र में कार्यरत संघ परिवार से जुड़े वनवासी कल्याण परिषद का मानना है कि यह समाज को बांटने के लिए वामपंथी और मिशनरी ताकतों की साजिश है. वहीं शिक्षा क्षेत्रों से जुड़े कई लोग इस मांग को स्वायत्तता के नजरिए से सही ठहराते हैं.

4 प्रदेशों के इन जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग

गुजरात के बनासकांठा-सावरकांठा-अरावली-महिदसागर-वडोदरा-भरूच-सूरत और पंचमहल का हिस्सा, दाहोद, छोटा उदयपुर, नर्मदा, तापी, नवसारी, वलसाड़, दमन दीव, दादर नागर हवेली को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग की जा रही है.

साथ ही राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़, सिरोही, राजसमंद और चित्तौड़गढ़, जालोर-बाड़मेर-पाली का हिस्सा. और महाराष्ट्र के जलगांव-नासिक और ठाणे का हिस्सा, नंदूरबाग, धुलिया और पालघर. वहीं मध्य प्रदेश के नीमच-मंदसौर-रतलाम और खंडवा का हिस्सा, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, धार, खरगोन और बुरहानपुर है.

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