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कोयला खदान ने बढ़ाईं ममता की मुश्किलें, आदिवासी कर रहे हैं देओचा पचमी खदान का कड़ा विरोध

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. देओचा पचमी कोयला खदान के ख़िलाफ़ इलाक़े के आदिवासी कड़ा विरोध कर रहे हैं.

यह दुनिया की सबसे बड़ी खानों में से एक है, और इसमें 2,102 मिलियन टन कोयले का अनुमानित भंडार है. 12 वर्ग किलोमीटर ये ज़्यादा पर फैला यह कोयला ब्लॉक बीरभूम ज़िले में है, और इसे दिसंबर 2019 में पश्चिम बंगाल सरकार को आवंटित किया गया था.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दावा है कि इस खदान से कम-से-कम एक लाख से ज़्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा. लेकिन इलाक़े के संथाल आदिवासी और क्षेत्र के छोटे किसानों का कहना है कि इससे उनकी आजीविका पर संकट गिरेगा.

आदिवासियों की इस सोच के पीछे की वजह साफ़ है. अनुमान है कि इस परियोजना से क़रीब 70 हज़ार लोग विस्थापित होंगे. इसके अलावा लोगों को डर है कि परियजना के लागू होने से वह अपनी पारंपरिक भूमि खो देंगे.

एक पत्रिका ने अपनी पड़ताल में पाया है कि यहां के निवासियों ने किसी भी मुआवज़े या पुनर्वास पैकेज से इनकार कर, यहां से कोयला खनन का विरोध किया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पर्यावरण कार्यकर्ता, जो कोयला खदान के खिलाफ अभियान चला रहे हैं, उन्हें प्रशासन द्वारा क्षेत्र से दूर रहने की धमकी दी जा रही है.

प्रतीकात्मक फ़ोटो

हालांकि खदान से फ़िलहाल कोयला खनन शुरू नहीं हुआ है, लेकिन खदान के ऊपर जो पत्थर की खानें हैं, उनकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफ़ी बढ़ गया है. इससे इलाक़े के छोटे किसानों की फ़सल को नुकसान पहुंच रहा है.

2019 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि प्रस्तावित देचा पचमी कोयला ब्लॉक पर काम तभी शुरू होगा जब वहां रह रहे 4,000 आदिवासियों का पुनर्वास हो जाएगा. हालांकि, 4000 लोग मतलब इलाक़े की सिर्फ़ 40 प्रतिशत आबादी.

इलाक़े के आदिवासी, और सामाजिक कार्यकर्ता राज्य की टीएमसी सरकार के दावा पर भी सवाल उठा रहे हैं कि अकेले देवचा-पचमी कोयला ब्लॉक में कम से कम एक लाख लोगों के लिए रोज़गार तैयार होगा.

टीएमसी ने इससे पहले भले ही भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों की लहर पर सवारी की हो, लेकिन अब यह देखना होगा कि सरकार में रहते हुए पार्टी का इन आंदोलनों के बारे में क्या रवैया रहता है.

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