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आदिवासी समर्थन गंवाने के बाद कैसे जीतेगी बीजेपी, ब्लूप्रिंट तैयार हो चुका है?

त्रिपुरा में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी आगामी चुनावों में वापसी सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.

पार्टी के एक वरिष्ठ सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि फ़िलहाल बीजेपी के पास 60 सदस्यीय विधानसभा में 36 विधायक हैं. अगले चुनाव में बीजेपी का लक्ष्य 50 सीटों के करीब जीतकर राज्य विधानसभा में अपनी उपस्थिति बढ़ाना होगा.

उन्होंने कहा, “उदयपुर में गुरुवार को संपन्न हुई दो दिवसीय राज्य कार्यकारिणी की बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. संगठन को चुनावी मोड में लाने के लिए कार्यकारी बैठक आयोजित की गई थी.”

पार्टी सूत्र ने कहा, “हाल ही में हुए उपचुनावों के परिणामों की वहां मौजूद पार्टी के सभी पदाधिकारियों ने व्यापक रूप से सराहना की, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में नया उत्साह पैदा हुआ.”

उन्होंने कहा कि आदिवासी बहुल पहाड़ी क्षेत्र के लिए विशेष मास्टर प्लान तैयार किया गया है.

इस नेता ने कहा, “वर्षों में शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मन के नेतृत्व में TIPRA, पहाड़ियों में बीजेपी के लिए एक भयंकर चुनौती के रूप में उभरा. इसने सरकार में बीजेपी के मुख्य सहयोगी आईपीएफटी के गढ़ों को भी बड़ा झटका दिया है. राजनीतिक रूप से TIPRA के उदय को रोकने के लिए कई अहम निर्णय लिए गए, जिसमें संगठन को ऊपर से नीचे तक पुनर्गठन करना शामिल है. बूथों को पुनर्जीवित करना, जनजातीय आबादी के लिए सरकारी कल्याणकारी पहलों के साथ अभियान तेज़ करना प्रमुख निर्णय थे.”

जनजाति मोर्चा के वरिष्ठ नेता और पूर्वी त्रिपुरा संसदीय क्षेत्र से सांसद रेबती त्रिपुरा ने उपचुनाव के नतीजों को बीजेपी के लिए उम्मीद की किरण बताया.

उन्होंने कहा, “बीजेपी सूरमा विधानसभा क्षेत्र में सत्ता बरकरार रखने में सफल रही, जिसे TIPRA का गढ़ माना जाता था. उस निर्वाचन क्षेत्र में 22 हज़ार से अधिक मतदाता आदिवासी समुदायों से आते हैं और इसलिए यह स्पष्ट था कि अगर TIPRA को इन सभी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त होता तो बीजेपी दूसरे या तीसरे नंबर पर समाप्त हो जाती. लेकिन परिणामों ने स्पष्ट संकेत दिया है कि लोग अब धीरे-धीरे बीजेपी की ओर बढ़ रहे हैं.”

रेबती त्रिपुरा के मुताबिक, बीजेपी का आंतरिक मूल्यांकन इस बात को रेखांकित करता है कि TTAADC चुनाव जीतने में विफल रहने के बावजूद भी पार्टी की पहाड़ी क्षेत्र में काफी उपस्थिति है.

उन्होंने कहा, “TTAADC क्षेत्रों में बीजेपी समर्थक हमेशा हिंसा के शिकार बने रहे. हमने कभी भी जवाबी कार्रवाई करने की कोशिश नहीं की लेकिन इस लाइन को बनाए रखा कि हम इसे राजनीतिक रूप से लड़ेंगे और हमारी रणनीति रंग ला रही है. सूरमा में जीत पहाड़ी इलाकों में ब्लॉक दर ब्लॉक पार्टी के निर्माण के लिए लगातार काम कर रहे समर्थकों के लिए एक उपलब्धि के रूप में काम करेगी.”

उन्होंने कहा कि उनके संसदीय क्षेत्र-पूर्वी त्रिपुरा में- 100 बूथों की पहचान ‘कमजोर’ के रूप में की गई है. उन्होंने कहा, “बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष को त्रिपुरा में बूथों को मजबूत करने का काम सौंपा गया है. वह 15 जुलाई को कई बैठकें करने और बूथ अध्यक्षों को बूथों के उचित प्रबंधन पर ट्रेनिंग देने के लिए पहुंचेंगे.”

बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता सुब्रत चक्रवर्ती ने कहा, “हमारे पास राज्य भर में कुल 45,000 पृष्ठ प्रमुख (Pristha Pramukhs) हैं जो चुनाव के समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. 3,300 से अधिक बूथ हैं जो सक्रिय हैं. राज्य कार्यकारिणी में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के नेताओं ने पार्टी की ताकत क्या है, कितने लोग सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं और जहां अस्थायी और पूर्ण सुधार की आवश्यकता है पर एक व्यापक अध्ययन प्रस्तुत किया है. रिपोर्ट की जांच के बाद जरूरत पड़ने पर नए सिरे से नियुक्तियां की जाएंगी. मैं हर जगह नहीं कहूंगा लेकिन कुछ हद तक रिप्लेसमेंट और नई नियुक्तियां थोड़े समय के भीतर की जाएंगी.”

चक्रवर्ती ने कहा कि आदिवासी बहुल इलाकों के लिए उनकी पार्टी एक गहन अभियान के लिए जाएगी.

उन्होंने कहा, “त्रिपुरा में बीजेपी सरकार ने वनवासियों को भूमि पट्टे की मंजूरी दी. इतना ही नहीं उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत आवास प्राप्त करने का पात्र बनाया गया है. कुल 17 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय खोले जा रहे हैं, आदिवासी क्षेत्रों के लिए 1,300 करोड़ रुपये की एक विशेष परियोजना की घोषणा की गई है और जल संकट, खराब सड़क संपर्क जैसे बारहमासी मुद्दों का समाधान सिर्फ इसी सरकार द्वारा किया जा रहा है. बीजेपी के सभी कार्यकर्ता घर-घर जाकर आदिवासियों के लिए बीजेपी की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करेंगे. भ्रामक राजनीति के दिन पहले ही समाप्त हो चुके हैं.”

आगामी चुनावों के लिए बीजेपी की रणनीतिक योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर, TIPRA के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर देबबर्मन ने कहा, “यह उनकी आंतरिक नीति का मामला है. हर पार्टी को यह अधिकार है कि वह किसी भी तरह से राजनीति करे, जब तक कि वह लोगों को प्रभावित न कर रही हो.”

देबबर्मन ने सूरमा में बीजेपी की जीत को कमतर आंकते हुए कहा, “देखिए सूरमा अनुसूचित जाति की सीट है. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 20,000 वोट मिले थे और उपचुनावों में उनका वोट शेयर 15,000 हो गया था. TIPRA ने लाभ कमाया क्योंकि उसने पहले चुनावों में शून्य से 12,000 वोटों की छलांग दर्ज की थी. उन्हें अपने विस्तार के लिए काम करना चाहिए, मुझे इस पर कुछ नहीं कहना है.”

मुख्यमंत्री माणिक साहा को विश्वास है कि बीजेपी 2023 में चुनाव जीतेगी. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी चुनाव जीतने में माहिर पार्टी मानी जाती है. लेकिन अभी भी देश के कई राज्यों में बीजेपी का संगठन उतना मज़बूत नहीं है कि वो अपनी योजना के अनुसार परिणाम हासिल कर सके.

पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने जिस ज़ोर शोर से चुनाव प्रचार किया था, उससे लगा था कि बीजेपी सत्ता में लौट रही है. लेकिन वहाँ बीजेपी जीत के क़रीब भी नहीं पहुँच सकी थी.

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