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PESA एक्ट के जनक, दिलीप सिंह भूरिया कौन थे ?

दिलीप सिंह भूरिया (Dilip Singh Bhuria) देश के एक जान-माने आदिवासी नेता और सांसद रहे. वे छह बार संसद के सदस्य भी रहे.

मध्य प्रदेश में दिलीप सिंह भूरिया की गिनती कद्दावर नेताओं में होती थी. दिलीप सिंह भूरिया ने अपनी राजनीतिक पारी का लंबा हिस्सा कांग्रेस पार्टी (Dilip singh bhuria in congress party) में बिताया था.

उन्हें उस समय देश की सबसे बड़ी और मजबूत नेता इंदिरा गांधी के करीबी माना जाता था. दिलीप सिंह भूरिया ने अपने समाज में दहेज और अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ काफी काम किया.

लेकिन दिलीप सिंह भूरिया को आदिवासी ही नहीं बल्कि पूरा देश जिस काम की वजह से जनता है वह है, “ पेसा एक्ट ” की ज़मीन तैयार करना.

24 दिसबंर 1996 को राष्ट्रपति से अनुमोदन के बाद पेसा एक्ट (PESA Act) तैयार हो गया था. देश के आदिवासियों के संदर्भ में यह क़ानून एतिहासिक माना जाता है.

इस कानून के तहत आदिवासी समुदायों के कस्टमरी लॉ यानि स्वशासन प्रणाली या फिर प्रथागत रुढ़ी कानूनों के अनुसार पंचायत व्यवस्था को लागू करने का प्रावधान दिया गया था.

दरअसल संविधान की अनुसूची 5 में यह कहता है कि देश के आदिवासी समुदायों को अपनी पहचान, संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को बचाए रखने का हक है. बल्कि संविधान सरकार को यह दायित्व देता है कि यह काम वह यानि सरकार करे.

इस दृष्टि से पेसा कानून को ऐतिहासिक माना जाता है. संविधान और कानून के जानकार यह मानते हैं कि उत्तर-पूर्व के कई राज्यों में संविधान की छठी अनुसूची के तहत अनुसूचित इलाकों में स्वायत्ता ज़िला परिषद बनाने का अधिकार दिया गया था. लेकिन देश की पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों को ऐसा अधिकार नहीं दिया गया था.

भूरिया कमेटी की सिफ़ारिशें

1994-95 में संविधान संशोधन अधिनियम समिति (Constitution amendment act committee) का गठन किया गया था. इस कमेटी को यह ज़िम्मेदारी दी गई थी कि पंचायती राज को पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में लागू करने का रास्ता बताए. साल 1992 में 73वें संशोधन के ज़रिए पंचायती राज अधिनियम संसद से पास हुआ था.

दिलीप सिंह भूरिया कमेटी ने 5वीं अनुसूची क्षेत्रों के लिए पेसा कानून की सिफ़ारिशों को तैयार करते हुए देश भर के सभी राज्यों के आदिवासी समाजों और वहां के ज़मीनी हालातों का ज़ायजा लिया था.

मसलन कमेटी ने यह बात नोट की थी कि कई पूर्वात्तर राज्य ऐसे हैं जहां छठी अनुसूची के बावजूद स्वायत्त ज़िला परिषद का गठन नहीं किया गया था. इस सिलसिले में दिलीप सिंह भूरिया कमेटी ने मणिपुर और असम का ज़िक्र किया था.

पांचवी अनुसूची में पेसा एक्ट की सिफ़ारिशों में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि आदिवासी समुदायों को अपनी संस्कृति और परंपरा को कायम रखने के साथ साथ उनके प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार भी दिया जाना चाहिए.

उनकी सिफ़ारिशों के आधार पर पेसा एक्ट 1996 में ग्राम सभा को व्यापक अधिकार दिए गए हैं. इन अधिकारों में आदिवासी प्रथागत कानूनों की रक्षा के साथ साथ अपने संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार भी शामिल है.

इस कानून में खनन या भूमि अधिग्रहण के लिए ग्रामसभा की अनुमित को अनिवार्य बना दिया गया था.

राजनीतिक सफ़र

दिलीप सिंह भूरिया का जन्म 18 जून 1944 को मध्य प्रदेश के झाबुआ ज़िले में हुआ था. भूरिया भील समुदाय से थे.

इन्होंने अपना राजनीतक सफ़र पेटलावद विधान सभा सीट से शुरू किया. साल 1972 में वे इस सीट से कांग्रेस पार्टी की टिकट पर विधायक चुने गए.

इसके बाद वह पहली बार 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. उन्होंने झाबुआ से 1980 से 1996 तक लगातार कांग्रेस की टिकट पर पांच बार चुनाव जीता था.

लेकिन यह बताया जाता है कि मध्यप्रदेश के कुछ बड़े कांग्रेस नेताओं से मतभेद की वजह से भूरिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और 1998 में बीजेपी में शामिल हो गए.

फिर 1998 के संसदीय चुनाव में भूरिया को बीजेपी की तरफ से झाबुआ सीट के लिए टिकट दिया गया, पर वह कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया से चुनाव हार गए थे.

उसके बाद जब 2104 में बीजेपी ने नरेन्द्र मोदी के को प्रधानमंत्री के तौर पर सामने रख कर चुनाव लड़ा तो फिर से पार्टी ने उन्हें झाबुआ से मौका दिया. वे एक बार फिर से संसद में आने में कामयाब रहे.

24 जून 2015 को 71 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

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