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TIPRA मोथा का आरोप- त्रिपुरा में आदिवासी ग्राम समितियों के चुनाव में जानबूझकर देरी कर रही राज्य सरकार

टिपरा मोथा (Tipraha Indigenous Peoples Regional Alliance) ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार जानबूझकर त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) के तहत ग्राम समितियों के चुनाव में देरी करके अपने “संवैधानिक दायित्व” का उल्लंघन कर रही है. पार्टी ने दावा किया कि इस “जानबूझकर देरी ने सैकड़ों आदिवासी गांवों में विकास और नागरिक सुविधाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया है.”

TIPRA मोथा के प्रवक्ता और वकील एंथनी देबबर्मा ने रविवार को द हिंदू को बताया, “यह बहुत निराशाजनक है कि राज्य सरकार बार-बार चुनाव कराने के आह्वान की अनदेखी कर रही है और हमें विश्वास है कि इसके कार्य प्रेरित हैं.”

उन्होंने कहा कि ग्राम समितियों के चुनाव पिछले दो वर्षों से रुका हुआ है क्योंकि टीटीएएडीसी की मुख्य परिषद का चुनाव टिपरा मोथा ने जीता था.

राज्य चुनाव आयोग (State Election Commission) त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला (ग्राम समिति की स्थापना) अधिनियम, 1994 की धारा 20 के अनुपालन में 587 ग्राम समितियों के चुनाव कराने के लिए नामित प्राधिकरण है.

त्रिपुरा हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने जुलाई 2022 में तत्कालीन चीफ जस्टिस इंद्रजीत मोहंती के नेतृत्व में राज्य चुनाव आयोग को उस वर्ष नवंबर की पहली छमाही तक चुनाव की कार्यवाही पूरी करने की सलाह दी थी.

लेकिन राज्य सरकार ने बाद में इस साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम का हवाला देते हुए कोर्ट से राहत ले ली थी. नई राज्य सरकार ने मार्च में सत्ता संभाली थी.

देबबर्मा ने कहा, “काफी समय बीत गया है इसके बावजूद राज्य के अधिकारी अनिच्छा दिखा रहे हैं. हाई कोर्ट ने मामले की नए सिरे से सुनवाई के लिए हमारी नवीनतम प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है.”

राज्य चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्य के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि वे 13 अप्रैल तक मामले में एक जवाबी हलफनामा जमा करेंगे.

टीटीएएडीसी जिसे संविधान की छठी अनुसूची के तहत गठित किया गया था, का राज्य के कुल भूमि क्षेत्र के तीन-चौथाई हिस्से पर सीमित अधिकार है.

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