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मां-बाप को खोने के बाद भी नहीं मानी हार, दिन-रात मेहनत कर पास किया NEET

ओडिशा के गजपति जिले के एक छोटे से गांव दुमिगुड़ा में रहने वाले नीरा मलिक ने गरीबी, अकेलापन और कठिन हालात के बावजूद NEET परीक्षा पास की और अब वह डॉक्टर बनने की राह पर है.

नीरा एक जनजातीय समुदाय से आता है. जब वह सिर्फ 10 साल का था, तब उसके पिता की मृत्यु हो गई.

उसकी मां लकवाग्रस्त थीं, जिनकी पूरी देखभाल नीरा ही करता था.

इस मुश्किल वक्त में उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी और जवाहर नवोदय विद्यालय से दसवीं की परीक्षा 88% अंकों के साथ पास की.

उसके बाद उसने ओडिशा आदर्श विद्यालय, गंडिमा से 12वीं की पढ़ाई पूरी की.

पर तभी एक और बड़ा दुख नीरा की जिंदगी में आया—उसकी मां का निधन, और वह अनाथ हो गया.

घर की जिम्मेदारी और आर्थिक तंगी के कारण उसने पढ़ाई छोड़ दी और खेती जैसे छोटे-मोटे काम करने लगा.

लेकिन उसके दिल में डॉक्टर बनने का सपना अब भी जिंदा था.

यहीं से नीरा की किस्मत बदली. एक गैर-सरकारी संस्था (NGO) जिसका नाम ‘Bipadaara Bandhu’ है, ने उसकी कहानी सुनी और मदद का हाथ बढ़ाया.

संस्था ने नीरा को  बेरहामपुर के ‘आर्यभट्ट इंस्टिट्यूट’ में मुफ्त NEET कोचिंग दिलवाई.

संस्था के संस्थापक  सुधीर राउत ने नीरा की मेहनत और लगन को देखकर पूरा सहयोग किया.

नीरा ने कोचिंग में जी-जान से मेहनत की और आखिरकार NEET 2025 की परीक्षा पास कर ली.

उसकी ऑल इंडिया रैंक 3,856 और एसटी (ST) श्रेणी में रैंक 72 आई. उसे पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में MBBS की सीट मिल गई.

नीरा अब डॉक्टर बनकर गरीब और दूर-दराज इलाकों के लोगों की सेवा करना चाहता है.

नीरा की इस सफलता में किसी सरकारी योजना या सहायता का योगदान नहीं था.

ना स्कॉलरशिप, ना छात्रावास, और ना ही मेडिकल कोचिंग की कोई सरकारी सुविधा उसे मिली.

ऐसे में यह साफ है कि सरकार की योजनाएं ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहीं.

अगर ‘Bipadaara Bandhu’ जैसे गैर-सरकारी संगठन उसकी मदद के लिए आगे नहीं आते, तो शायद नीरा का सपना अधूरा ही रह जाता.

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