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फैक्ट फाइंडिंग टीम ने नागरहोल टाइगर रिजर्व में आदिवासी अधिकारों के हनन का आरोप लगाया

ऑल इंडिया फैक्ट फाइंडिंग (All India Fact Finding Team) टीम ने नागरहोल टाइगर रिजर्व (Nagarahole Tiger Reserve) में आदिवासी अधिकारों के हनन का आरोप लगाया. कार्यकर्ताओं ने कानून के अनुसार आदिवासियों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए तत्काल उपाय करने का आह्वान किया है.

बुधवार को शहर में पत्रकारों से बात करते हुए समिति के सदस्यों और आदिवासी प्रतिनिधियों ने जंगल के अंदर आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई.

सामुदायिक नेटवर्क अगेंस्ट प्रोटेक्टेड एरियाज (CNAPA) और नागरहोल आदिवासी जम्मपले हक्कू स्थापना समिति (NAJHSS) के आह्वान पर कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं की छह सदस्यीय समिति ने 8 से 11 अप्रैल के बीच नागरहोल टाइगर रिजर्व क्षेत्र का चार दिवसीय दौरा किया.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने विभिन्न कानूनों के अनुपालन की स्थिति के साथ-साथ “संरक्षित क्षेत्रों” और पुनर्वास स्थलों में आदिवासियों की स्थिति को समझा. टीम ने कई स्थानों पर कई ग्रामीणों से बातचीत की और अधिकारियों से मुलाकात की.

पैनल के सदस्यों में से एक, कमल गोपीनाथ ने कहा कि आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन करने और उनके उत्थान के संबंध में विभिन्न अदालती निर्देशों का उल्लंघन करने के लिए समिति अवमानना ​​मामले के साथ अदालत का रुख करेगी.

यह पहली बार नहीं है जब नागरहोल टाइगर रिजर्व से आदिवासियों के अधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठी है. इससे पहले भी यहां इस तरह के मुद्दे देखने को मिले हैं. पिछले महीने 15 मार्च से 21 मार्च के बीच नागरहोल रिजर्व फॉरेस्ट के आदिवासियों के समर्थन में कई राज्यों के आदिवासी एक पैदल मार्च में शामिल हुए थे.

दरअसल दक्षिण कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में आदिवासी लंबे समय से जबरन विस्थापन और वन अधिकार क़ानून, 2006 के तहत अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

यहाँ के जंगल के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर कई तरह के हितों का टकराव है. मसलन कॉफी एस्टेट के मालिक, लाभ-केंद्रित वन्यजीव लॉबी और औपनिवेशिक रवैये वाला वन विभाग  सभी यहाँ के आदिवासियों के ख़िलाफ़ खड़े हैं. यहाँ पर जेनु कुरुबा, बेट्टा कुरुबा, पनियास, यारवास और जंगल के कुछ अन्य मूल निवासियों के साथ रहते हैं. 

राजीव गांधी या नागरहोल नेशनल पार्क के रूप में जाना जाने वाली भूमि को 1999 में एक टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था. यहां के स्थानीय समुदायों का संघर्ष लोगों के अपनी जमीन पर रहने के अधिकार के मूल सिद्धांत में निहित है.

नागरहोल में आदिवासियों और यहाँ के मूल निवासियों के विस्थापन का सिलसिला 1978-80 में शुरू हुआ. यहां रहने के अपने अधिकारों के लिए लोगों के निरंतर संघर्ष के बावजूद यहां से विस्थापन भी अनवरत जारी है. संरक्षित क्षेत्र के रूप में नागरहोल की स्थापना के बाद से विस्थापित गांवों की संख्या 47 हो चुकी है. लेकिन अभी भी वन विभाग लोगों को जंगल से निकालने के इरादे छोड़ नहीं रहा है.

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