Mainbhibharat

कोविड वैक्सीन का डर या स्वास्थ्य कर्मियों की नाकामी – क्यों छिपे पेड़ों पर आदिवासी?

आदिवासियों की कोविड वैक्सीन लगवाने को लेकर हिचकिचाहट के मामले आए दिन हम सुनते हैं. इसी कड़ी में तमिलनाडु के कोयंबत्तूर के पास एक आदिवासी बस्ती के पुरुषों का एक समूह कोविड वैक्सीन से बचने के लिए पेड़ों पर चढ़ गया.

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की एक टीम जब शुक्रवार को बस्ती में पहुंची तो उससे बचने के लिए यह पुरुष पेड़ों पर चढ़ गए. बस्ती की औरतें पानी भरने के बहाने चली गईं.

स्वास्थ्य विभाग भले ही इस घटना को वैक्सीन की झिझक माने, लेकिन आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता इसे आदिवासी समुदाय तक स्वास्थ्य प्रणाली की खराब पहुंच और उनके बीच जागरुकता की कमी का उदाहरण बताते हैं.

सरकारपोरती आदिवासी बस्ती के कुछ लोग उस समय पेड़ों पर छिप गए, जब पूलुवापट्टी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्वास्थ्य कर्मी जब बस्ती में पहुंचे.

चिकित्सा अधिकारी के नेतृत्व में इस टीम ने बस्ती में सिर्फ़ सात लोगों को ही वैक्सीन लगाया. टीम को इस इलाक़े की कुछ दूसरी आदिवासी बस्तियों के आदिवासियों से भी इसी तरह की प्रतिक्रिया मिली.

स्वास्थ्य सेवा के उप निदेशक एस. सेंथिल कुमार ने एक अखबार को बताया कि वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट ही आदिवासियों की इस प्रतिक्रिया की वजह है.

उन्होंने कहा है कि वह उन शिकायतों पर भी गौर करेंगे कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता इस इलाक़े में आदिवासियों को दूसरी स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए नहीं जाते हैं, और बस वैक्सिनेशन ड्राइव के लिए ही इन बस्तियों में पहुंचे.

ज़ाहिर है कि इन हालात में यह कहना ग़लत है कि सिर्फ़ वैक्सिनेशन के डर से आदिवासी पेड़ों पर चढ़ गए. इस घटना से पता चलता है कि देश की स्वास्थ्य प्रणाली अभी तक पूरी तरह से आदिवासियों तक पहुंचकर, उनका विश्वास नहीं जीत पाई है.

ऐसे में ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग और दूसरे अधिकारियों की है कि वो सुनिश्चित करें कि सभी स्वास्थ्य सेवाओं से आदिवासियों को लाभ मिले, न सिर्फ़ कोविड वैक्सिनेशन से.

आदिवासी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अधिकांश स्वास्थ्य कार्यकर्ता दूरदराज़ की आदिवासी बस्तियों में जाते ही नहीं हैं. तभी आदिवासियों के साथ वो तालमेल नहीं बना पाए हैं.

Exit mobile version