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फेस्टिवल शैंडी आज भी आदिवासियों के आकर्षण का केंद्र

आंध्र पदेश में मंगलवार को मकर संक्रांति के उत्सव के एक सप्ताह पहले जी मदुगुला मंडल मुख्यालय (G Madugula mandal headquarters) के द्वारा आयोजित होने वाली शैंडी (shandy) जिसे लोकप्रियता से ‘तारू मारू सांता’ के नाम से जाना जाता है, वहां सैंकड़ों आदिवासी एकत्रित हुए.

तारु मारु सांता का मतलब एक साप्ताहिक बाजार है.

दिलचस्प बात यह है कि शैंडी एक समय माता-पिता के लिए अपने बच्चों के लिए दूल्हा या दुल्हन चुनने का एक प्रसिद्ध मंच था.

इसके साथ ही शैंडी कई गांवों के लिए एक मिलन स्थल होने के साथ ही आदिवासियों के लिए संक्रांति त्योहार के अवसर पर रिश्तेदारों को अपने घरों में आमंत्रित करने का एक सभा स्थल भी है.

इसे पांडुगा सांता या फेस्टिवल शैंडी भी कहते है. यह आदिवासियों के लिए एक परंपरा बन गई है.

जनजातीय क्षेत्र के सभी ग्यारह मंडलों में इसका नाम और प्रसिद्धि है क्योंकि शैंडी पारंपरिक जनजातीय तरीके से संगठित होती है और लोग ज़ोरा नमस्कार के साथ एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं (दोनों व्यक्ति थोड़ा आगे झुकते हैं और अपने हाथों से दोनों हाथ मिलाते हैं).

इसके अलावा लोग कुछ खरीदने के लिए कोई सामान देते थे यानी पहले लोग बार्टर सिस्टम (Bartar System) का प्रयोग करते थे. वे लोग अपनी द्वारा उगाई गई चीजों के बदले कपड़े और दूसरी चीजें खरीदते थे.

जिस समय शैंडी और बार्टर सिस्टम था उस समय यानी तीन दशक पहले आदिवासी क्षेत्र में कोई परिवहन सुविधाएं, सड़कें या संचार नेटवर्क नहीं थे. ऐसे में अलग-अलग गांवों के रिश्तेदारों से मिलने के लिए शैंडी ही एकमात्र रास्ता था.

इसके साथ ही शैंडी में न केवल अविभाजित विशाखापत्तनम ज़िले (Visakhapatnam district) के व्यापारी बल्कि गोदावरी ज़िले (Godavari districts) और ओडिशा (Odisha) के व्यापारी भी शामिल होते थे.

एक शख्स गोलोरी रामबाबू ने कहा कि उसे पता चला कि उसके दादाजी ने 80 के दशक की शुरुआत में शैंडी के दौरान एक महिला यानी उसकी दादी को देखने और उन्हें पसंद करने के बाद उनसे शादी कर ली थी.

गोलोरी रामबाबू ने यह भी बताया कि पहले यही परंपरा थी कि अगर अपको शैंडी के दौरान कोई लड़की पसंद है तो आप उसे प्रपोज करने के साथ ही उससे शादी भी कर सकते है.

पहले शैंडी का आयोजन माओवादी प्रभावित वाले इलाकों में से एक जी मदुगुला में कब्रिस्तान के बिल्कुल करीब किया जाता था. इसे गुंडाला सांता कहा जाता था. जिसका अर्थ है दफन भूमि शैंडी. गुंडालु का अर्थ है कब्रगाह.

एक व्यापारी अरुण कुमार ने बताया कि डेढ़ दशक पहले शैंडी को कब्रिस्तान क्षेत्र से हटाकर 10 एकड़ के एक क्षेत्र में लगाना शुरु किया गया.

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि हर साल दूर-दराज के अलग-अलग गांवों से भी लोग फेस्टिवल शैंडी में आते हैं. लेकिन आजकल इस शैंडी में युवाओं के लिए शादी से जुड़े कोई भी कार्यक्रम का आयोजन नहीं होता है. लेकिन फिर भी सभी प्रकार के आदिवासी समुदायों के लोग के शैंडी में शामिल होते हैं.

Image Credit: Times of India

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