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पोषण भी, आदिवासियों को वित्तीय सहायता भी, एक तीर से दो निशाने

आदिवासियों में पोषण संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए 2019 में एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई एक पहल ने न सिर्फ चुनी हुई आदिवासी आबादी के पोषण सेवन में सुधार किया है, बल्कि फूड प्रोसेसिंग में काम करने वाली आदिवासी महिलाओं के लिए एक वित्तीय सहायता प्रणाली भी बनाई है.

केंद्र सरकार की ‘गिरि पोषण’ योजना, बच्चों और किशोर लड़कियों में कम वजन, शारीरिक विकास की कमी और एनीमिया जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक वार्षिक योजना है. इसके तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं में कम हीमोग्लोबिन की समय का भी पोषण संबंधी हस्तक्षेप से समाधान ढूंढा जा रहा है.

इस योजना के लिए तेलंगाना के आदिम जाति कल्याण और महिला एवं बाल कल्याण विभाग को ICRISAT से तकनीकी, परिचालन और वैज्ञानिक समर्थन मिल रहा है.

परियोजना का मकसद तीन रेडी-टू-कुक खाद्य उत्पाद जैसे मल्टिग्रेन सीरियल, ज्वार मील और मल्टिग्रेन मीठा भोजन, और तीन रेडी-टू-ईट उत्पाद जैसे मूंगफली तिल चिक्की, तली हुई मूंगफली की चिक्की और ज्वार से बनी चीजें सप्लाई करना है. यह काम ICRISAT द्वारा एजेंसी इलाकों में आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से चुने हुए लाभार्थियों के बीच किया जाना है.

इस पहल को ICRISAT के एग्रीबिजनेस एंड इनोवेशन प्लेटफॉर्म के पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ‘न्यूट्रीफूड बास्केट’ के रूप में पेश किया गया था. इसमें 5,000 आदिवासियों को शामिल किया गया.

2019 में शुरू किए गए गिरि पोशन के दूसरे चरण के दौरान, अधिकारियों ने एक और कदम आगे बढ़ते हुए उत्नूर, भद्राचलम और एटुरुनगरम में 13,000 लाभार्थियों को उनके दरवाजे पर भोजन पहुंचाया.

2021-22 के लिए, राज्य सरकार ने 404 आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से इस पहल को शुरू करने के लिए कोलम, तोटी, चेंचू और कोंडारेड्डी जैसे आदिम आदिवासी समूहों के 16,468 लाभार्थियों को चुना है. इस परियोजना की निगरानी नियमित आधार पर राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन द्वारा की जा रही है.

दूसरे चरण में खाद्य उत्पाद बाहर बनाए गए. लेकिन पिछले साल आदिवासी समुदायों के बीच अपने दम पर भोजन का उत्पादन, प्रसंस्करण और पैकेज करने की क्षमता विकसित की गई थी, ताकि वे पोषण उद्यमी बन सकें.

इस साल आदिवासी महिलाओं द्वारा संचालित Joint Liability Groups (JLG) के नेतृत्व में फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स में भोजन का उत्पादन किया जा रहा है.

“कच्चा माल भी आदिवासी किसान से ही खरीदा जा रहा है. उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण और खपत तक, सप्लाई चैन के सभी लोगों को इसका फायदा मिल रहा है,” एलएस कामिनी, उप परियोजना प्रबंधक, आदिवासी कल्याण विभाग ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया.

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