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मणिपुर हिंसा पर पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट के लिए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के खिलाफ FIR दर्ज

आम लोगों के पैसे या चंदे की मदद से बनी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (Editors Guild of India) की फैक्ट फाइंडिंग टीम के तीन सदस्यों के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया है.

एक सोशल मीडिया एक्टिविस्ट ने एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार ने एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है जो मणिपुर राज्य में और अधिक हिंसा को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

सीएम बीरेन सिंह ने कहा कि एडिटर्स गिल्ड के तीन सदस्यों- सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. एडिटर्स गिल्ड ने अभी तक अपने सदस्यों के खिलाफ दायर एफआईआर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

मीडिया को संबोधित करते हुए सीएम बीरेन सिंह ने कहा, “मैं एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों को चेतावनी देता हूं कि वो ऐसे काम नहीं करें. इस संगठन का गठन किसने किया? अगर आप कुछ करना चाहते हैं तो मौके पर जाइए, जमीनी हकीकत देखिए, सभी समुदायों के प्रतिनिधियों से मिलिए और फिर जो मिला उसे प्रकाशित कीजिए. नहीं तो सिर्फ कुछ लोगों से मिलकर किसी नतीजे पर पहुंचना बेहद निंदनीय है.”

उन्होंने आगे कहा, “राज्य सरकार ने एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है जो मणिपुर राज्य में और अधिक झड़पें पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.”

एफआईआर के मुताबिक, पुलिस ने आईपीसी की धारा 153-ए200/295/298/500/505(1)(बी)/505(2))120-बी लगाई है.

पुलिस ने समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के संबंध में आईपीसी के प्रावधानों को भी लागू किया है.

शिकायत में क्या कहा गया है?

शिकायत के मुताबिक, रिपोर्ट में एक तस्वीर में कुकी के घर से धुआं उठता हुआ दिखाने का झूठा दावा किया गया. जबकि यह वास्तव में एक वन अधिकारी का कार्यालय था. शिकायत में कहा गया कि रिपोर्ट झूठी है और ‘कुकी उग्रवादियों’ द्वारा प्रायोजित है.

क्या है मामला?

दरअसल, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने मणिपुर से संबंधित मीडिया रिपोर्टों की जांच के लिए राज्य का दौरा किया है. टीम ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि जातीय हिंसा के दौरान ‘एकतरफा’ रिपोर्ट प्रकाशित की गईं और इंटरनेट प्रतिबंध ने ‘मामलों को और भी बदतर’ बना दिया.

2 सितंबर को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने ‘मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया की रिपोर्ट पर फैक्ट-फाइंडिंग मिशन’ की एक रिपोर्ट जारी की थी.

सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट की गई अपनी रिपोर्ट में गिल्ड ने दावा किया था, “इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि संघर्ष के दौरान राज्य का नेतृत्व पक्षपातपूर्ण हो गया. उसे जातीय संघर्ष में किसी का भी पक्ष लेने से बचना चाहिए था लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा. यह एक लोकतांत्रिक सरकार का कर्तव्य नहीं है.”

एडिटर्स गिल्ड ने कहा- कुछ खबरों के कारण सुरक्षा बलों की बदनामी हुई

सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर की तीन सदस्यीय टीम 7 से 10 अगस्त तक मणिपुर में थी. उनकी 24 पेज की ‘मणिपुर में जातीय हिंसा की मीडिया रिपोर्टों पर फैक्ट-फाइंडिंग मिशन की रिपोर्ट’ यह भी बताती है कि कैसे कुछ खबरों के कारण सुरक्षा बलों की बदनामी हुई.

अपनी सिफारिशों में इसने कहा, ‘मैतेई मीडिया सुरक्षा बलों, विशेषकर असम राइफल्स की निंदा करने में एक पक्षकार बन गया. असम राइफल्स के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार करके वह अपने कर्तव्य में विफल रहा. यह दावा करता रहा कि यह केवल जनता के विचारों को प्रसारित कर रहा था. यह तथ्यों को सत्यापित करने और फिर अपने रिपोर्ट में उनका उपयोग करने में विफल रहा.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार ने भी मणिपुर पुलिस को असम राइफल्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देकर इस बदनामी का मौन समर्थन किया. यह दर्शाता है कि राज्य के एक हाथ को नहीं पता था कि दूसरा क्या कर रहा है या यह जान-बूझकर की गई कार्रवाई थी’.

इंटरनेट बंद गलती थी

एडिटर्स गिल्ड की रिपोर्ट ने समाचारों की क्रॉस-चेकिंग और निगरानी को प्रभावित करने में इंटरनेट प्रतिबंध की भूमिका का उल्लेख किया और इसे सीधे तौर पर ‘गलती’ और अफवाहों को फैलने देने का एक तरीका बताया है.

मणिपुर में पहली बार बीते 3 मई को इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसी दिन राज्य में जातीय हिंसा की शुरुआत हुई थी, जो पिछले चार महीनों से जारी है. तब से कई सरकारी आदेशों में इसे जारी रखा गया था, जब तक कि जून के अंत में इसके प्रतिबंधित उपयोग की अनुमति नहीं दी गई.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सरकार द्वारा इंटरनेट बैन का पत्रकारिता पर हानिकारक प्रभाव पड़ा, क्योंकि इसका सीधा असर पत्रकारों की एक-दूसरे, उनके संपादकों और उनके सोर्स के साथ बातचीत करने की क्षमता पर पड़ा. इसका असर मीडिया पर भी पड़ा, क्योंकि बिना किसी संचार के एकत्र की गईं स्थानीय खबरें स्थिति का संतुलित दृष्टिकोण देने के लिए पर्याप्त नहीं थीं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इंटरनेट पर प्रतिबंध बिल्कुल जरूरी हो जाता है तो समाचार प्लेटफार्मों को प्रतिबंध से छूट दी जानी चाहिए और मीडिया प्रतिनिधियों, नागरिक समाज संगठनों और सरकारी प्रतिनिधियों की एक समिति को प्रतिबंध और इसकी अवधि की निगरानी करनी चाहिए.

इसमें जोर देकर कहा गया कि किसी भी परिस्थिति में राज्य सरकार को अनुराधा भसीन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के खिलाफ नहीं जाना चाहिए.

विशेष रूप से रिपोर्ट में कहा गया है कि संघर्ष के दौरान मणिपुर मीडिया प्रभावी रूप से बहुसंख्यक मैतेई समुदाय का मीडिया बन गया था.

जातीय झड़पों की एक अभूतपूर्व स्थिति

वहीं शुक्रवार को असम राइफल्स के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने कहा था, “पहले के विपरीत, मणिपुर में इस समय चल रहे जातीय झड़पों की एक ‘अभूतपूर्व’ स्थिति देखी जा रही है. दोनों समुदायों के पास बड़ी संख्या में हथियार हैं, जो राज्य सरकार को मुश्किल में डाल रहे हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.”

डीजी ने कहा, “मणिपुर में हम जिस स्थिति का सामना कर रहे हैं, वह अभूतपूर्व है. हमने कभी इस तरह की किसी चीज़ का सामना नहीं किया है. 90 के दशक की शुरुआत में कुछ ऐसा ही हुआ था जब नागा और कुकी के बीच लड़ाई हुई थी और फिर 90 के दशक के अंत में कुकी समूहों के भीतर भी लड़ाई हुई थी. आज, सबसे बड़ी चुनौती दोनों समुदायों के भीतर बड़ी संख्या में हथियार हैं. इसके साथ-साथ दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे की जान लेने पर उतारू हैं. आज जो रहा है उसे रोकने की सख्त जरूरत है.”

उन्होंने कहा, “लोगों को यह अहसास कराने की जरूरत है कि आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता शांति है.”

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