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श्रीमती: इरूला जनजाति से पहली डॉक्टर बनेंगी

तमिलनाडु के नीलगिरी में बसे इरूला आदिवासी समुदाय के लिए एस श्रीमती की कामयाबी एक बड़ी उपलब्धि है. एस श्रीमती अपने समुदाय की पहली लड़की है जो एमबीबीएस में दाख़िला पा गई है. उनके पिता एक टीचर हैं और माँ बाग़ान में काम करती है.

तिरुनेलवेली गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में दाख़िले के बाद एस श्रीमती ने कहा, “मेरा बचपन से एक ही सपना था कि में मेडिकल की पढ़ाई करूँ. इस सपने को पूरा करने के लिए मैंने पूरी मेहनत और लगन से पढ़ाई की है. आज मेरा सपना पूरा हो गया है.”

उन्होंने बताया कि वो बच्चों की डॉक्टर बनना चाहती हैं. अपनी कामयाबी के बारे में बात करते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि उनके समुदाय के बाक़ी लड़के लड़कियों को उनकी कामयाबी प्रेरणा देगी. इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरी कामयाबी मेरे समुदाय के कुछ लड़कियों को राह दिखा सकती है कि अगर मेहनत और लगन से अपने मुक़ाम को हासिल करने में लगे रहें तो कामयाबी मिलती है.”

एस श्रीमती यह कहती हैं कि उनकी कामयाबी उनके समुदाय के दूसरे परिवारों को अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए प्रेरित होंगे. लेकिन उन्हें अपने समुदाय के हालातों का भी अहसास है. वे यह जानती हैं कि उनके समुदाय के लोगों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना इतना आसान नहीं है. 

वो कहती हैं, “ हमारे समुदाय में सरकार की योजनाओं के बारे में बहुत कम जानकारी है. इसलिए हमारे समुदाय के लोग उन योजनाओं का फ़ायदा ही नहीं ले पाते हैं.”  एस श्रीमती कहती हैं कि उनके समुदाय के ज़्यादातर परिवारों की आर्थिक हालत बेहद ख़राब है, इसलिए भी उनके समुदाय में बच्चों को शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है.

श्रीमती का कहना है कि उनके समुदाय के लोग जंगल के इलाक़ों में रहते हैं. वहां पर आधुनिक सुख सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं. कई बार जंगल में जानवरों से टकराव होता है. कुल मिला कर आदिवासी समुदाय के बच्चों के लिए हालात चुनौतीपूर्ण हैं.

इस सबसे बावजूद श्रीमती अपने समुदाय के लिए एक रोल मॉडल बनना चाहती हैं. 

इरूला जनजाति को सरकार ने विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति (particularly vulnerable tribal group) की श्रेणी में रखा है.

आमतौर पर इस जनजाति को दुनिया भर में साँप पकड़ने और उनका ज़हर निकालने वाले आदिवासियों के तौर पर जाना जाता है. ये ज़हरीले से ज़हीरले सांप को भी आसानी से अपने वश में कर सकते हैं.

इस समुदाय में कुछ परिवार सांप के काटने पर फैलने वाले ज़हर को बेअसर करने वाली औषधी भी बनाते है. ऐसा दावा किया जाता है कि जंगल के इलाक़े में इस औषधी से ही लोगों की जान बचती थी.

2015 में कोयम्बटूर के इरूला आदिवासियों में शिक्षा की स्थिति पर की गई एक स्टडी में यह दावा किया गया है कि अब यह जनजाति पढ़ाई की तरफ़ झुकाव दिखा रही है.

इस स्टडी में बताया गया है कि बेशक अब यह समुदाय अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है. लेकिन चाहने और होने के बीच में इनके हालात खड़े हैं.

इरूला परिवारों में से ज़्यादातर ग़रीबी में फँसे हैं इसलिए उनका सारी जद्दोजहद परिवार पालने तक ही सीमित हो जाती है.

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