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विश्व की सबसे बड़ी आदिवासी जात्रा में गुड़ के लिए दिखाना होगा आधार कार्ड, 21 फ़रवरी से उत्सव शुरू होगा

आदिवासी जात्रा (world's biggest tribal jatra)

तेलंगाना(Telangana) के मुलूगू ज़िले (Mulugu district) के मेदाराम गाँव में 21 फरवरी से शुरू होने वाली जात्रा में देवता को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के लिए आधार कार्ड की फोटो कॉफी देनी होगी.

यह जात्रा विश्व का सबसे बड़ा आदिवासी त्योहार (world’s biggest tribal jatra) सम्मक्का सरलाम्मा (Sammakka Saralamma Jatara) है.

इस जात्रा को सम्मक्का सरक्का जात्रा (Sammakka Sarakka Jatara) और मेदाराम जात्रा (Medaram Jatara) भी कहा जाता है. इस त्योहार के दिन आदिवासी अपने देवी-देवताओं का सम्मान करते हैं.

मेदाराम के नाम के एक छोटे से वन गाँव की आबादी करीब 300 है, लेकिन इस जात्रा में 1.2 करोड़ से अधिक भक्त उत्सव में शामिल होते है.

यह भक्त तेलंगना और पड़ोसी राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से जात्रा में शामिल होने आते हैं.

ऐसा भी कहा जाता है की कुंभ मेले के बाद मेदाराम जात्रा देश में सबसे अधिक संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है.

यह जात्रा मेदाराम में उस समय लगया जाता है, जब आदिवासी मानते है की उनके देवी-देवता उनसे मिलने आए है.

आदिवासी लोक कथाओं के अनुसार सम्मक्का और सरलम्मा दोनों मां और बेटी थी. इन दोनों ने उस समय के शासको के खिलाफ़ अन्यायपूर्ण कानून के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी.

कैसे मनाया जाता है सम्मक्का सरलाम्मा त्योहार

यह त्योहार कन्नेपल्ली गांव से सरक्का की मूर्ति के पारंपरिक आगमन के साथ शुरू होता है. इस मूर्ति से मेदाराम के एक मंच पर रखा जाता है.

लाल कपड़े से ढकी प्रतिमा को सिन्दूर और हल्दी पाउडर से लदे बर्तन में लाया जाता है. लेकिन उससे पहले मेदाराम से चार किलोमीटर दूर स्थित कन्नेपल्ली में एक छोटे से मंदिर में आदिवासी पुजारियों एकत्रित होते है और देवी- देवताओं का अनुष्ठान शुरू करते है.  

वे इस मंदिर में घंटो पूजा कर देवी को मंदिर में बुलाते है. इसके अलावा आदिवासी पुजारियों और जिला अधिकारियों के एक समूह द्वारा देवता को पारंपरिक सम्मान दिया जाता है.

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वहीं भक्त देवी-देवताओं को अपने वजन के बराबर बंगाराम (गुड़) चढ़ाते हैं और जम्पन्ना वागु नदी में पवित्र स्नान करते हैं.

जम्पन्ना वागु की धार्मिक महत्व

जम्पन्ना वागु गोदावरी नदी की एक सहायक नदी है. जम्पन्ना आदिवासी योद्धा और आदिवासी देवी सम्मक्का का पुत्र था.

जम्पन्ना वागु काकतीय सेना के खिलाफ लड़ते हुए इस नदी पर मर गए थे. इस नदी का पानी लाल रंग का है. आदिवासियों का मानना है की यह लाल रंग शहीद जम्पन्ना के खून से हुआ है.

आदिवासी भक्त यह भी कहते है की जम्पन्ना वागु के लाल पानी में पवित्र डुबकी लगाने से उन्हें उन देवी-देवताओं के बलिदान की याद आने लगती है.

वहीं इस नदी पर एक पुल भी बना हुआ है, जिसे जम्पन्ना वागु ब्रिज के नाम से जाना जाता है.

6000 टीएसआरटीसी बस चलेगी

इस साल 30 लाख यात्रियों को ले जाने के लिए जात्रा से 6,000 विशेष बसें चलाई जाएगी. ये बसें 18 से 24 फरवरी तक राज्य भर में 51 स्थानों से संचालित की जाएंगी.

वहीं टीएसआरटीसी ने यह घोषणा की है कि महिलाओं के लिए चल रही मुफ्त बस सेवा जात्रा के लिए चलाई जाने वाली विशेष बसों पर भी लागू होगी.

इसके अलावा 2 से 29 फरवरी तक समक्का सरक्का जात्रा के पास मौजूद एतुरु नगरम आरक्षित वन से गुजरने वाले सभी वाहनों को पर्यावरणीय प्रभाव शुल्क को माफ कर दिया गया है.

मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा जारी आदेशों के अनुसार पर्यावरणीय प्रभाव शुल्क माफ करने से भक्तों को मेदाराम जात्रा तक पहुंचने के लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

वन विभाग द्वारा पसरा, तडवई और एतुरु नगरम क्षेत्र से आने वाले वाहनों से मामूली शुल्क वसूला जाता है. इस शुल्क से मिलने वाली राशि का इस्तेमाल आरक्षित वन और वन्यजीवों की रक्षा के लिए और प्लास्टिक और अन्य कचरे को इकट्ठा करने के लिए किया जाता था.

आधार के बदले ही मिलेगा भक्तों को बंगारम गुड़

देवी-देवताओं को ‘बंगाराम’ के रूप में चढ़ाए जाने वाले गुड़ के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार ने इस बार आधार नियम लागू करने का निर्णय लिया है.

इस नियम के तहत जो भक्त गुड़ चढ़ाना चाहते हैं उन्हें काउंटरों पर अपने आधार की ज़ेरॉक्स कॉपी जमा करनी होगी.

उत्पाद शुल्क विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि भक्तों को अपना नाम, फोन नंबर और गुड़ खरीदने का उद्देश्य भी बताना होगा.

यह डेटा प्रतिदिन जिला स्तरीय अधिकारियों को सौंपा जाएगा.

माओवादियों ने लड्डू या कोई और प्रसाद चढाने पर पाबंदी लगाई

यहां पर माओवादी आंदोलन का प्रभाव भी माना जाता है. माओवादियों ने मेदाराम में प्रसाद के रूप में भक्तों को बंगाराम नामक गुड़ के अलावा कुछ भी जैसे कि लड्डू या पुलिहोरा वितरित करने के खिलाफ चेतावनी दी.

इसके अलावा माओवादियों ने वन क्षेत्र के रख-रखाव में स्वच्छता बनाए रखने और जात्रा के आयोजन के लिए अपनी फसल को छोड़ने वाले किसानों को मुआवजा देने की मांग भी की है.

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