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केरल: जंगल की आग को रोकने के लिए वन विभाग ले रहा है आदिवासियों की मदद

केरल के पतनमत्तिट्टा ज़िले में वन विभाग के अधिकारियों ने जंगल में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए कमर कस ली है. यहां के जंगलों में आमतौर पर जनवरी के महीने में आग लगने का सिलसिला शुरू होता है.

अधिकारी जंगल की आग को रोकने के लिए यहां के आदिवासी निवासियों की मदद ले रहे हैं. इसके लिए कई उपाय किए जा रहे हैं, जिनसे जंगल की आग को नियंत्रित किया जा सकेगा. आदिवासी इस काम में माहिर हैं, और वो आग बुझाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं.

अधिकारियों ने घरों और सड़कों से जंगल में आग को फैलने से रोकने के लिए वन क्षेत्रों और मानव बस्तियों के बीच फायरब्रेक या फायर लाइन बनाना शुरू कर दिया है. सूखी घास की वजह से आग फैलने की संभावना वाले वन क्षेत्रों में नियंत्रित तरीके से घास जलाने का काम भी चल रहा है.

इसके अलावा, “फायर गैंग्स” को मजबूत किया जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों के सदस्य शामिल हैं.

इलाके में जंगल की आग का मौसम जनवरी में शुरू होता है और जून-जुलाई तक चलता है. इसीलिए फायर लाइन बनाने का काम शुरू कर दिया गया है और जलने को नियंत्रित किया जा रहा है.

बीच-बीच में पेड़-पौधे साफ कर जंगल को सड़क और मानव बस्तियों से अलग करते हुए वन क्षेत्रों की बाउंड्री पर 5 मीटर चौड़ी फायर लाइन बनाई गई है. यह किसी भी आग को सड़क या मानव बस्तियों से जंगल में फैलने से रोकेगा.

गर्मी के मौसम में, जंगल में चट्टानों पर उगने वाली घास सूख जाती है और इसमें आग लगने की संभावना बढ़ जाती है. इस घास को कड़ी निगरानी में जलाया जा रहा है. इसे नियंत्रित तरीके से जलाया जा रहा है.

फायर गैंग में जंगल और उसके आसपास रहने वाले आदिवासी शामिल हैं. अगर कोई आग लगती है, तो यह फायर गैंग्स आग बुझाने के लिए तत्काल कदम उठाते हैं, और संबंधित अधिकारियों को सूचित करते हैं.

वन विभाग ने कोन्नी और रान्नी वन संभागों में एक-एक जिला स्तरीय नियंत्रण कक्ष भी स्थापित किया है.

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