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गुजरात: छोटा उदयपुर में ज़मीन के अधिकार को लेकर भिड़े आदिवासी और वन अधिकारी

बुधवार की सुबह जब वन अधिकारी गुजरात के छोटा उदयपुर ज़िले के गोंडारिया गांव में सामाजिक वानिकी के लिए वृक्षारोपण करने पहुंचे, तो उन्हें इलाक़े के आदिवासियों के विरोध का सामना करना पड़ा.

आदिवासियों ने यह दावा करते हुए वृक्षारोपण का विरोध किया कि वन भूमि उनके स्वामित्व में है, और पीढ़ियों से उनके परिवार इस भूमि पर खेती कर रहे हैं.

बात इतनी बढ़ गई कि आदिवासी समूह को तितर-बितर करने के लिए वन अधिकारियों ने हवा में गोलियां चलाईं. छोटा उदयपुर थाना के एक अधिकारी ने कहा कि एफ़आईआर दर्ज की जा रही है.

गोंडारिया गांव के वरजूभाई राठवा ने मीडिया को बताया कि मंगलवार को जब वन अधिकारी वृक्षारोपण के लिए भूमि का सर्वेक्षण करने आए थे, तभी आदिवासियों ने उनका विरोध किया था. आदिवासियों ने वन अधिकारियों से यह  अनुरोध भी किया था कि वे इस भूमि पर पौधे न लगाएं क्योंकि आदिवासी इस भूमि पर पीढ़ियों से खेती करते आ रहे हैं.

इलाक़े के आदिवासियों का दावा है कि उन्होंने अपने नाम पर भूमि अधिकार पट्टों के लिए आवेदन दायर किए हुए हैं. ये आवेदन लंबित हैं. ऐसी स्थिति में अगर वृक्षारोपण होता है, तो यह आदिवासी अपनी आजीविका खो देंगे.

आदिवासियों की बात को दरकिनार कर बुधवार को वन अधिकारी मज़दूरों के साथ आए और वृक्षारोपण के लिए ज़मीन खोदना शुरू कर दिया. इसकी जानकारी जैसे ही ग्रामीणों तक पहुंची, मौके पर पहुंच गए और इसका विरोध किया.

राठवा ने दावा किया कि पुलिस के साथ वन अधिकारियों ने उन्हें रोका और जब उन्होंने विरोध करना जारी रखा, तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया और एक वन अधिकारी ने हवा में गोलियां चला दीं.

राठवा ने यह भी कहा कि कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया, और उन्हें थाने ले जाया गया. कुछ लोग घायल हैं और उनका अस्पताल में इलाज चल रहा है. राठवा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने वन अधिकारियों के खिलाफ निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर जिलाधिकारी को एक ज्ञापन सौंपा है.

छोटा उदयपुर में एफ़आरए

वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act) 2006, भारत सरकार द्वारा आदिवासियों के ज़मीन पर अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था. इसे आदिवासी आबादी वाले हर राज्य में अपनी गति से लागू किया जा रहा है.

अधिनियम के तहत राज्यों के अनुसूचित और गैर-अनुसूचित वन क्षेत्रों में एसटी और दूसरे पारंपरिक वनवासियों के पारंपरिक आवास, सामाजिक, आर्थिक और आजीविका अधिकारों को पंजीकृत कर प्रदान करने की परिकल्पना की गई है. एफ़आरए-2006 व्यक्तिगत, सामुदायिक और बुनियादी सुविधाओं के अधिकार देता है.

गुजरात सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार छोटा उदयपुर ज़िले की पांच तालुकों के 222 गावों में अब तक ज़मीन के कुल 6545 दावों को मानकर पट्टे दिए गए हैं. यह दावे 4002.46 हेक्टेयर भूमि के लिए मज़ूर किए गए हैं.

छोटा उदयपुर के आदिवासी

गुजरात का छोटा उदयपुर ज़िला 2013 में वडोदरा ज़िला से अलग कर बनाया गया था. जिले को बनाने के पीछे विकेंद्रीकरण और जनता की सरकारी सेवाओं तक पहुंच आसान करने के लिए बनाया गया था. लेकिन जानकार मानते हैं कि इसे बनाने के पीछे एक और वजह थी. ज़िले के निर्माण की घोषणा 2012 में गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले की गई थी, जिसे मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों ने भाजपी की आदिवासी वोटों को आकर्षित करने की रणनीति के रूप में भी देखा था.

2011 की जनगणना के अनुसार छोटा उदयपुर की आबादी 1,071,831 है. इसमें अनुसूचित जाति की जनसंख्या 25,279, और अनुसूचित जनजाति की 856,862 है. यानि यह एक आदिवासी बहुल इलाक़ा है, जिसकी लगभग 80 प्रतिशत (79.94%) आबादी आदिवासी है.

ज़िले में ज़्यादातर राठवा आदिवासी बसते हैं. राठवा छोटा उदयपुर की सभी तालुकों और पंचमहल जिले में भी पाए जाते हैं. वे गुजराती की एक बहुत ही अलग बोली बोलते हैं, जिसे राठवी कहा जाता है. इनका मुख्य पेशा खेती है. इनके 56 कुल या क्लैन हैं, और एक ही कुल में शादी करना निषिद्ध है.

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