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दिहाड़ी मज़दूरी से मेडिकल स्टूडेंट बनने तक शुभम का सफर

ओडिशा के खुर्दा ज़िले के एक छोटे से गांव मुदुलिडीहा के 19 वर्षीय आदिवासी युवक शुभम साबर ने यह साबित कर दिया कि सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत और मेहनत सबसे बड़ा सहारा होती है.

कभी बेंगलुरु की कंस्ट्रक्शन साइट पर दिहाड़ी मज़दूरी करने वाला यह युवक अब डॉक्टर बनने के रास्ते पर है.

पहली बार में मिली सफलता

शुभम ने साल 2025 में पहली बार NEET-UG परीक्षा दी और अनुसूचित जनजाति वर्ग (ST) में 18,212वां रैंक हासिल किया.

इसके बाद उसे सरकार द्वारा संचालित एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज, ब्रह्मपुर में एमबीबीएस के पहले वर्ष में प्रवेश मिल गया.

यह उपलब्धि शुभम के लिए ही नहीं, बल्कि उसके पूरे गांव और समुदाय के लिए गर्व की बात है.

मेहनत और संघर्ष की कहानी

शुभम की बारहवीं तक की पढ़ाई भुवनेश्वर में हुई. इसके बाद उसने मेडिकल की तैयारी करने का निश्चय किया.

उसने ब्रह्मपुर की एक निजी कोचिंग संस्था में एक साल का कोर्स जॉइन किया. लेकिन आर्थिक स्थिति मज़बूत न होने की वजह से फीस और एडमिशन के लिए पैसे जुटाना आसान नहीं था.

इसी मुश्किल को हल करने के लिए शुभम ने बेंगलुरु का रुख किया और वहां निर्माण कार्य कंस्ट्रक्शन साइट पर मज़दूरी शुरू की.

वह दिनभर मेहनत करता और कमाई हुई रकम से कोचिंग का कर्ज़ भी चुकाता और भविष्य की पढ़ाई के लिए पैसे भी जोड़ता रहा.

शुभम नीट परीक्षा देने के बाद खाली नहीं बैठना चाहता था. इसलिए उसने उस समय को काम करके पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल किया.

शुभम ने बताया कि इस कमाई से जो पैसा आया, उसी से उसका एडमिशन भी हुआ है.

शुभम ने कहा कि बचपन से ही उसका सपना डॉक्टर बनकर ग़रीबों की सेवा करना था और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसने लगातार मेहनत की.

पहली कोशिश में ही नीट परीक्षा पास करने पर उसने ईश्वर का धन्यवाद किया.

वहीं, शुभम के पिता सहदेब सबर ने सरकार से उम्मीद जताई हैं कि सरकार उनके बेटे की पांच साल की एमबीबीएस पढ़ाई पूरी करने के लिए आर्थिक सहायता देगी.

उन्होंने बताया कि शुभम बेहद मेहनती और होनहार है.

उन्होंने कहा कि ग़रीबी के बावजूद हमने कभी उसे पढ़ाई करने से नहीं रोका.

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