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हस्तशिल्प से आत्मनिर्भरता तक: वाराणसी में Tribes India का विस्तार

वाराणसी अब केवल धार्मिक भावना और पर्यटन का केंद्र ही नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और शिल्पकला को भी देश-दुनिया तक पहुंचाने का माध्यम बन रहा है.

25 जुलाई 2025 को वाराणसी के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर “Tribes India” का नया स्टोर खोला गया.

इस स्टोर की शुरुआत महान आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में की गई.

यह प्रयास आदिवासी समुदायों को आर्थिक रूप से मजबूत करने और उनके पारंपरिक उत्पादों को देश-विदेश के यात्रियों तक पहुँचाने की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है.

Tribes India का यह नया स्टोर उत्तर प्रदेश में छठा और वाराणसी में तीसरा आउटलेट है.

इस पहल के पीछे भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत काम करने वाला संगठन TRIFED (Tribal Cooperative Marketing Development Federation of India) है.

TRIFED का उद्देश्य है कि भारत के दूर-दराज़ जंगलों और गांवों में रहने वाले आदिवासी समुदायों द्वारा तैयार किए गए वस्त्र, हस्तशिल्प, जैविक उत्पाद और पारंपरिक सामग्रियों को सीधा बाज़ार मुहैया कराया जाए, जिससे उन्हें उचित मूल्य और पहचान मिले.

स्टोर का उद्घाटन एक सादे लेकिन सम्मानित समारोह में किया गया जिसमें एयरपोर्ट निदेशक पुनीत गुप्ता, TRIFED की क्षेत्रीय प्रबंधक प्रीति तोलिया, CISF की कमांडेंट सुचिता सिंह और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधिकारी शामिल हुए.

सभी ने इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि यह न केवल आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायक होगा, बल्कि पर्यटकों और आम यात्रियों को भारत की विविध सांस्कृतिक पहचान से भी जोड़ पाएगा.

वाराणसी एयरपोर्ट जैसे भीड़भाड़ वाले स्थान पर Tribes India का आउटलेट खुलना इसलिए भी खास    है, क्योंकि यहां प्रतिदिन देश-विदेश से हज़ारों यात्री आते हैं.

अब यात्रियों को एयरपोर्ट पर ही भारत की विभिन्न जनजातियों के बनाए गए बांस और लकड़ी से बने शिल्प, हाथ से बुने कपड़े, जैविक मसाले, हाथ से बने गहने और परंपरागत सजावटी वस्तुएं मिलेंगी.

इससे न केवल ग्राहकों को गुणवत्तापूर्ण और अनोखे उत्पाद मिलेंगे, बल्कि आदिवासी समुदायों को उनकी मेहनत का सीधा लाभ मिलेगा.

उत्तर प्रदेश में लगभग 11 लाख आदिवासी लोग रहते हैं, और ऐसे में Tribes India का विस्तार इस राज्य के लिए विशेष महत्त्व रखता है.

यह पहल “वोकल फॉर लोकल” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे अभियानों के तहत भी एक अहम भूमिका निभा रही है.

TRIFED यह सुनिश्चित कर रहा है कि आदिवासी उत्पाद बिना किसी बिचौलिए के सीधे उपभोक्ता तक पहुंचे, जिससे कारीगरों को उनका पूरा मुनाफ़ा मिल सके.

यह सामाजिक न्याय और आर्थिक सुधार का सशक्त उदाहरण है.

हाल ही के आंकड़ों से पता चलता है कि यात्रियों और पर्यटकों में Tribes India उत्पादों की अच्छी मांग बनी हुई है.

 TRIFED के पिछले सालों के डेटा से पता चलता है कि  आदी महोत्सव जैसे आयोजनों में प्रत्येक आदिवासी कारीगर ने ₹2 लाख से ₹15 लाख तक की बिक्री की थी.

इस तरह के मेला आयोजन और आउटलेट्स उत्पादकों को बेहतर मुनाफ़ा दिलाते हैं.

Tribes India आउटलेट्स में मिलने वाले उत्पादों की कीमतें ₹600 से ₹13,000 के बीच होती हैं, जो उनकी सामग्री, आकार और श्रेणी पर निर्भर करती हैं.

सबसे ज्यादा बिकने वाले ब्रास और मीनाकारी की मूर्तियाँ, डेस्कटॉप सजावट के आइटम ₹1,600 से ₹4,000 तक मिलते हैं.

वहीं, हाथ से बुनी हुई सिल्क या कॉटन साड़ियाँ ₹7,000 से ₹13,000 के बीच होती हैं, जबकि कढ़ाई वाले कुर्ता-पैंट सेट की कीमत ₹2,400 से ₹4,100 के बीच होती है.

बांस और लकड़ी से बने ट्रे, हैंडबैग और सजावटी आइटम ₹600 से ₹1,300 के बीच आते हैं.

इसके अलावा, जैविक उत्पाद जैसे A2 गाय का घी और त्रिफला पाउडर ₹600 से ₹700 के बीच बिकते हैं.

यात्रियों में ये हल्के, टिकाऊ और स्थानीय उत्पाद उपहार या व्यक्तिगत उपयोग के लिए लोकप्रिय हैं.

Tribes India के अधिकांश आउटलेट और उत्पाद भारत के विभिन्न आदिवासी समुदायों द्वारा संचालित और बनाए जाते हैं.

इनमें खास तौर पर सांथाल, गोंड, भील, मुण्डा, मामा, कुकी, नागा, बैरवा, और उरांव जैसे जनजाति समूह शामिल हैं.

ये आदिवासी अपने पारंपरिक हुनर और कला के माध्यम से हस्तशिल्प, कपड़े, धातु के सामान, और जैविक उत्पाद तैयार करते हैं.

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