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जनजातियों को आदिवासी ही कहा जाए, वनवासी या वनबंधु नहीं

गुजरात विधानसभा में शनिवार को इस बात पर ख़ूब बहस हुई कि आदिवासियों को किस नाम से संबोधित किया जाए. विपक्षी कांग्रेस ने भाजपा सरकार से आदिवासियों का ज़िक्र करते हुए “वनवासी” और “वनबंधु” जैसे शब्दों का इस्तेमाल बंद करने को कहा. कांग्रेस ने कहा कि यह दोनों शब्द असंवैधानिक और अपमानजनक हैं.

कांग्रेस ने राज्य सरकार से कहा कि जानजातियों को “आदिवासी” ही कहा जाए, और इसके लिए एक सर्कुलर जारी किया जाए.

राज्य के जनजाति कल्याण मंत्री गणपत वसावा ने कहा कि इन शब्दों का इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि राज्य और केंद्र की पिछली कांग्रेस सरकारों ने भी कल्याण योजनाओं में “वनबंधु” और “वनवासी” शब्दों का उल्लेख किया है.

वसावा का तर्क यह है कि यह शब्द सिर्फ़ कुछ आदिवासी कल्याण योजनाओं जैसे “वनबंधु कल्याण योजना” में उपयोग किए जाते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने ‘आदिवासी’ शब्द को ‘वनवासी’ और ‘वनबंधु’ से बदलने के लिए कोई सर्कुलर जारी नहीं किया है.

मंत्री ने यह भी कहा कि 2006 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने भी वन-निवासी अनुसूचित जनजाति शब्द का इस्तेमाल किया था, जिसका मतलब गुजराती में “वनवासी” ही है.

कांग्रेस विधायक चंद्रिका बारिया ने दावा किया है कि इन शब्दों के उपयोग से आदिवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. आदिवासी विधायक अनिल जोशीआरा ने सरकार से इन शब्दों पर प्रतिबंध लगाने, और जनजातियों को संबोधित करने के लिए सिर्फ़ आदिवासी शब्द का उपयोग करने के लिए कहा.

जोशीआरा ने कहा कि वनवासी शब्द असंवैधानिक है, और इसका साहित्यिक अर्थ है जंगली यानि असभ्य. जबकि आदिवासी का अर्थ है आदिकाल से इस भूमि पर रहने वाले लोग.

नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी ने कहा कि बाहरी लोग जंगलों में जाने के बाद वन-निवासी होने का दावा करते हैं, और धीरे-धीरे ख़ुद को आदिवासी कहना शुरु कर देते हैं. इससे असली आदिवासियों के अधिकार छिन जाते हैं.

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