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क्या किसी एक आदिवासी समूह का है शिक्षा पर ज्यादा अधिकार?

तेलंगाना के आदिवासी संगठनों ने ट्राइबल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस सोसाइटी द्वारा राज्य में अपने 88 गुरुकुलों में एमपीसी, बीपीसी और दूसरे इंटरमीडिएट कार्यक्रमों में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की अधिसूचना पर कड़ी नाराजगी जताई है.

अधिसूचना के हिसाब से सोसाइटी ने 14 उत्कृष्टता केंद्रों (Centres of Excellence) में लंबाड़ा समुदाय के लिए सबसे ज्यादा सीटें आवंटित की हैं, जबकि कुछ आदिवासी समुदायों के लिए एक भी सीट नहीं है.

तीन इंटरमीडिएट कार्यक्रमों में दाखिले के लिए हर उत्कृष्टता केंद्र में 135 सीटों में से 114 सीटें लंबाड़ा समुदाय के बच्चों को आवंटित की गई हैं. गोंड/नायकपोड को 3, कोया को 12 और येरुकला को एक सीट आवंटित की गई थी.

कोलम, चेंचू या कोंडा रेड्डी आदिवासियों को एक भी सीट आवंटित नहीं की गई है. यह सभी पीवीटीजी यानी आदिवासियों में भी बेहद पिछड़े वर्ग का हिस्सा हैं. अंध, परधान, मन्नेवार को भी कोई सीट आवंटित नहीं की गई है.

सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में सीटों के आवंटन के पीछे जो भी आधार हो, आदिवासी नेताओं का मानना है कि जनसंख्या के अनुपात के आधार पर वही फॉर्मूला बाकी 74 गुरुकुलों में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. सभी गुरुकुलों में सबसे ज्यादा सीटें लंबाड़ा समुदाय को ही आवंटित की गई हैं.

आदिवासी पुरोहित प्रधान संक्षेमा संघम ने इस अन्याय को लेकर ट्राइबल वेलफेयर विभाग को ज्ञापन सौंपा है.

संगठन के महासचिव अतराम पेंटैया ने कहा, “उचित प्रक्रिया का पालन न करके, लंबाड़ा को दस गुना सीटें देना संविधान के खिलाफ है.”

“यह न सिर्फ संवैधानिक, बल्कि प्रशासन का मानवीय और नैतिक दायित्व भी है कि वह सभी आदिवासी समुदायों के साथ समान व्यवहार करे. हालांकि यह सच है कि दूसरे आदिवासी समुदायों की तुलना में लंबाड़ा समुदाय के सदस्यों की आबादी ज्यादा है, लेकिन इस वजह से दूसरे समुदायों के बच्चों को शिक्षा से वंचित करना ठीक नहीं है,” उस्मानिया यूनिवर्सिटी के गणित विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सीएच किशोर कुमार ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा.

संस्थानों में प्रवेश के लिए परीक्षा 27 मार्च, 2022 को होगी.

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