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एक बार फिर सपनों की उड़ान भरते इरुला आदिवासी बच्चे

तमिलनाडु के तिरुवल्लूर ज़िले की इरुला आदिवासी बस्ती के लगभग 40 बच्चों की पढ़ाई पिछले एक साल से ठप पड़ी है.

कोविड लॉकडाउन की वजह से इन छात्रों ने एक साल से ज़्यादा से स्कूल का रुख नहीं किया है. ऊपर से ग़रीबी और उनके गांव के आधुनिक समाज से दूर होने से उनके लिए ऑनलाइन शिक्षा भी विकल्प नहीं था.

इन हालात में एक एनजीओ की पहल इन बच्चों और उनके माता-पिता के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई है. एनजीओ ने इस आदिवासी बस्ती में दैनिक ट्यूशन क्लास शुरू की हैं.

इन बच्चों में पढ़ने और सीखने की ललक का अंदाज़ा इसी बात से लग जाता है कि पहले दिन ही क़रीब 30 छात्रों ने क्लास में हिस्सा लिया. ज़्यादातर क्लासेस इस इरुला बस्ती के पास के एक गांव के सरकारी हाई स्कूल के टीचर एस प्रभाकरन द्वारा ली जा रही हैं.

बच्चों को पढ़ाने के लिए समुदाय से ही एक स्थायी टीचर खोजने की कोशिश हो रही है. फ़िलहाल गांव की एक महिला की पहचान की गई है, जिन्होंने बारहवीं तक पढ़ाई की है, और वो बच्चों को कुछ बुनियादी लेसन दे सकती हैं.

बच्चों को नियमित रूप से क्लास में शामिल करना भी एक बड़ी चुनौती है, और इस पर काम हो रहा है. बच्चे अगर क्लास में नहीं आते, तो वो मछली पकड़ने या खेतों में काम करने चले जाएंगे. ज़्यादातर बच्चे प्राइमरी में पढ़ने वाले हैं.

बस्ती के कई छात्रों ने लॉकडाउन के चलते स्कूल ही छोड़ दिया. कुछ तो अपने टीचरों और स्कूलों के नाम भी भूल गए हैं क्योंकि एक साल से स्कूल नहीं गए हैं.

गैर सरकारी संगठन Information and Resource Centre for the Deprived Urban Communities (IRCDUC) ने बच्चों के लिए स्टेशनरी जुटाने में मदद की है.

एक बार जब इन बच्चों की बेसिक पढ़ाई पूरी हो जाएगी, तो संगठन उन्हें पास के स्कूल में एनरोल करने के लिए क़दम उठाएगा. ज़रूरत पड़ी तो इन्हें स्कूल तक ले जाने के लिए ऑटोरिक्शा की व्यवस्था की जाएगी.

इसके अलावा बस्ती के लोगों को अपने बच्चों को ट्यूशन क्लास में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

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