गोवा के आदिवासियों के लिए एक अच्छी खबर सामने आई है.
वहाँ के जंगल अधिकारों की समितियों ने दक्षिण गोवा में 104 दावों को मंज़ूरी दी है, जबकि उत्तर गोवा में 45 दावे स्वीकार किए गए हैं.
ये दावे उन लोगों ने किए थे जो सदियों से जंगलों के आसपास रह रहे हैं और जिनका संबंध वन आश्रित जीवन से है.
यह सब “Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006” के तहत हो रहा है.
इस कानून के अनुसार वन निवासी समुदायों को जंगल की जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर वैधानिक अधिकार मिलते हैं.
गोवा सरकार ने जंगल अधिकारों के मामलों को निपटाने की प्रक्रिया को तेज कर दिया है.
दक्षिण गोवा और उत्तर गोवा दोनों में ग्रामसभा, जंगल अधिकार समितियाँ और अन्य सरकारी विभाग मिलकर काम कर रहे हैं ताकि ये दावे सही तरह से जांचे और मंज़ूरी दी जाएँ.
इससे आदिवासी और पारंपरिक वन निवासी लोगों को राहत मिली है.
बहुत समय से लंबित मामलों को एक तरह से मान्यता मिल रही है.
इस प्रक्रिया के तहत जिन लोगों को अधिकार दिए जा रहे हैं, वो अब “सन्द” (ownership documents) प्राप्त कर पाएँगे, जिससे उनकी जमीन और जंगल के उपयोग पर उनका हक़ क़ायम होगा.
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में और गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की सरकार ने यह प्रतिज्ञा की है कि जो भी जंगल अधिकारों के मामले बाकी हैं, उन्हें दिसंबर 2025 तक निपटा लिया जाएगा.
हालाँकि कुछ चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं.
कुछ मामलों में ग्रामसभा या संबंधित समितियों द्वारा दावा प्रस्तुत करने और उसकी जांच के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ों और प्रक्रियाओं की कमी पाई गई है.
लोगों को समझ नहीं आना या समय पर जानकारी न मिलना भी वजह बनी है.
समय समय पर विशेष कैंप आयोजित किए जा रहे हैं जहाँ प्रशासन जिला अधिकारी, वन विभाग और आदिवासी विभाग मिलकर जंगल अधिकारों के मामलों की सुनवाई करते हैं.
ऐसे कैम्प छोटे छोटे गाँवों में लगते हैं ताकि प्रभावित लोगों को सुविधानुसार दावा जमा करने में मदद मिल सके.
इस तरह की कार्रवाई से यह साफ़ संकेत मिलता है कि सरकार जंगल निवासियों के अधिकारों को मान्यता देने की ओर गंभीर है.
लोगों में उम्मीद जगी है कि उनका हक़ मिलेगा, उनका जीवन बेहतर होगा और जंगलों के संसाधनों पर उनका नियंत्रण सुरक्षित होगा.