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आदिवासियों का होली हाट, घोड़ी और भवानी नृत्य आकर्षण का केंद्र

होली के त्योहार (Holi Festival) में बस कुछ ही दिनों का वक्त रह गया है. इसी समय आदिवासी और अन्य ग्रामीण के लोग अपने घर लौटते है.

कई महीने लगाकर मेहनत से कमाए गए पैसों को ये लोग अपने परिवार के लिए स्थानीय हाट से मनपसंद सामान खरीदने में खर्च कर देते हैं.

होली के लगभग एक हफ्ते पहले गाँवों में होली हाट (Holi Haat) लगना शुरू हो जाता है. इन हाट में खान-पान की चीज़े, झूले, कपड़े और भी कई चीजे होती है.

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इस होली हाट का आकर्षण यहां के आदिवासी नृत्य होते हैं.

भवानी नृत्य

महाराष्ट्र के वाणी में आदिवासियों द्वारा भवानी की मां के रूप में पूजा की जाती है. लोग देवी का रूप धारण कर अपने पुतले को पकड़कर पांरपरिक वाद्यंत्रों के साथ नृत्य (Bhavani Dance) करते हुए हाट में नज़र आते है.

जब आदिवासी लोग हाट बाज़ार घूमने आते है तो वह इन नर्तकों पर कूंक चावल छिड़कते है और उनकी प्लेटों में होली का फाग (पैसे) रखते हैं.

आदिवासियों में यह पंरपरा होती है की जो लोग हाट बाज़ार में भवानी और घोड़े नृत्य करते हैं, उन पर कूंक चावल छिड़का जाता है और अपने इच्छा अनुसार पैसे दिए जाते है, जिसे फाग कहते हैं.

ऐसा माना जाता है की जो भी आदिवासी फाग देते हैं. उनके परिवार के लोग पूरे साल स्वस्थ रहते हैं.

घोड़ी नृत्य

इन होली हाट में लोग घोड़ी नृत्य (Gohdi Dance) भी करते हुए दिख जाएंगे. इन नृत्य में घोड़ी के तरह दिखने वाला मुखौटा पहना जाता है और दो लकड़ी के सहारे यह नृत्य किया जाता है.

आदिवासियों में यह मान्यता है कि बच्चों को नृत्य करवाने के लिए नर्तकों को अगर बच्चों को सौंपा जाता है तो बच्चों की छोटी-मोटी बीमारियां ठीक हो जाती है.

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