केंद्र सरकार ने दो साल पहले उत्तराखंड में आदिवासी औषधीय पौधों का एक सर्वेक्षण शुरू किया था. अब आदिवासियों तक अपनी पहुंच का विस्तार करते हुए, सरकार आयुष मंत्रालय से परामर्श करने के बाद इस सर्वेक्षण के परिणामों को आयुर्वेदिक अभ्यास में शामिल कर सकती है.
यह बात जनजातीय मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी ने मीडिया के साथ साझा की.
औषधीय पौधों के सर्वेक्षण के पायलट प्रोजेक्ट के लिए पतंजलि योगपीठ को शामिल किया गया था. इसके तहत उत्तराखंड के चार जिलों – देहरादून, उधम सिंह नगर, पिथौरागढ़ और चमोली – जिनमें आदिवासी आबादी की अच्छी मात्रा है, में आदिवासियों द्वारा इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली औषधियों का सर्वेक्षण हुआ.
“परियोजना दो साल पहले चालू हुई थी और जल्द ही पूरी हो जाएगी. इसके परिणाम भविष्य में आयुष मंत्रालय के परामर्श के बाद आयुर्वेदिक अभ्यास में शामिल किए जा सकते हैं,” मंत्रालय के एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया.
अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण के परिणाम मोनोग्राफ के रूप में प्रकाशित किए जाएंगे.
पिछले हफ्ते, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री, अर्जुन मुंडा ने परियोजना की प्रगति की समीक्षा के लिए दिल्ली में पतंजलि योगपीठ के एमडी और सह-संस्थापक आचार्य बालकृष्ण के साथ बैठक की थी.
मुंडा ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें इन जड़ी-बूटियों और पौधों के साथ-साथ आदिवासी उपचारकर्ताओं/डॉक्टरों का एक भंडार बनाए रखना चाहिए, ताकि यह बहुमूल्य ज्ञान नष्ट न हो. इसी मकसद के साथ हमने एक ऐसा डेटाबेस तैयार करने की कोशिश की है जो न सिर्फ शोधकर्ताओं के लिए, बल्कि इलाज की हर्बल प्रणालियों के चिकित्सकों के लिए भी उपयोगी हो सकता है.”
पतंजलि योगपीठ के अधिकारियों ने कहा, “अब तक, यह माना जाता था कि उत्तराखंड में औषधीय पौधों की लगभग 1,100 किस्में हैं, लेकिन हमने राज्य के सिर्फ चार आदिवासी जिलों में 1,000 से अधिक पौधों की खोज की है. यह फाइटोडायवर्सिटी में एक नया आयाम जोड़ता है.”