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आदिवासियों के दावे निरस्त करने का सिलसिला जारी, 6 महीने में वनाधिकार पट्टों के 3152 दावे ख़ारिज

फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 (Forest Rights Act 2006) के अंतर्गत आदिवासियों और जंगल में रहने वाले दूसरे समुदायों को ज़मीन का मालिकाना हक़ देने का प्रावधान है.

लेकिन देश के ज़्यादातर राज्यों में इस क़ानून को लागू करने में कोताही बरती जा रही है. बल्कि यह कहना ठीक होगा कि ज़्यादातर राज्यों में प्रशासन इस क़ानून को लागू करने में बाधा पैदा कर रहा है.

संसद में दी गई जानकारी के अनुसार पिछले साल यानि 2020 में, 1 मार्च से लेकर 31 अगस्त के बीच कम से कम 3152 फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट के तहत पट्टा हासिल करने के लिए किए गए दावों को रद्द कर दिया गया.

जनजातीय मामलों के मंत्रालय की तरफ़ से संसद में एक प्रश्न के जवाब में यह जानकारी दी गई है. 

मंत्रालय ने यह जानकारी भी दी है कि इस दौरान, यानि 1 मार्च से लेकर 31 अगस्त 2020, के बीच कम से कम 1544 नए दावे भी पेश किए गए हैं. 

राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी

इस सिलसिले में राज्य सभा में सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और सांसद फूलो देवी नेताम ने सवाल पूछा था. इन सांसदों ने सरकार से यह सवाल भी किया था कि क्या इन दावों को रद्द करने का कारण सैटेलाइट मैप से तैयार इमेज को बनाया गया है. 

इस सवाल के जवाब में सरकार ने गोलमोल जवाब दिया है. मंत्रालय का कहना है कि इस बारे में उसे राज्य सरकारों से कोई सूचना नहीं मिली है. 

लेकिन मंत्रालय ने संसद में जानकारी दी है कि सेटलाइट मैप वनाधिकार पट्टों के दावे ख़ारिज करने का आधार नहीं हो सकता है. सरकार ने संसद में स्पष्ट किया है कि सैटेलाइट इमेज कोई अनिवार्य आधार नहीं है. 

आदिवासी मामलों को देखने वाले जनजातीय मंत्रालय का कहना है कि फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 सिर्फ़ एक अनुपूरक ज़रूरत है.

राज्यसभा सांसद फूलो देवी नेताम

यानि अपने दावों के साथ जो साक्ष्य दावाकर्ता (आदिवासी) देता है, उसकी पड़ताल के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है. लेकिन यह अनिवार्य बिलकुल नहीं बनाया जा सकता है. 

फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 के नियम 13 के अनुसार सैटेलाइट इमेजरी दावाकर्ताओं द्वारा पेश अन्य साक्ष्यों के लिए केवल अनुपूरक (supplementary) साक्ष्य हो सकता है. 

मंत्रालय ने जानकारी देते हुए कहा है कि वनाधिकार क़ानून के नियम 12 में यह स्पष्ट किया गया है कि इस आधार पर दावे निरस्त नहीं किए जा सकते हैं. 

मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि इस सिलसिले में केन्द्र सरकार की तरफ़ से राज्य सरकारों को एक पत्र भी भेजा गया था. इस पत्र में दावों की पहचान करने के लिए  जीपीएस/एन्ड्रयोड फ़ोन आदि का उपयोग कर के दावों की ज़मीनी पड़ताल करने की सलाह दी गई थी.

मंत्रालय ने कहा है कि फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट का नियम 6 ज़िला प्रशासन और ख़ासतौर से एलडीआरसी से उम्मीद करता है कि वन और राजस्व मैप तैयार करके ग्राम सभाओं और एफ़आरसी की सहायता करें.  

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