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तमिलनाडु: प्रशासन ने किया अनदेखा, तो सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने की आदिवासियों की मदद

पिछले 50 सालों से तमिलनाडु के तिरुवल्लूर ज़िले के अरियत्तूर गाँव में रहने वाले आदिवासी हर साल बारिश के मौसम में कई परेशानियां झेलते हैं. हल्की-फुल्कि बारिश में भी उनके अस्थायी घरों की छतों से पानी लगातार रिसता रहता है.

लेकिन अब सरकारी स्कूल के तीन शिक्षकों की बदौलत यह आदिवासी परिवार अब चैन की नींद सो सकते हैं.

तिरुवल्लुर के केएनसी गवर्नमेंट हाई स्कूल के सी सोलोमन, के बालाजी और एस प्रभाकरन ने अरियत्तूर के अब्दुल कलाम नगर में रहने वाले परिवारों को 30 तिरपाल शीट दान की हैं.

इससे पहले इनके घरों पर भूसे की छत थी, जो हल्की बारिश भी नहीं झेल सकते थे. पिछले साल हुई बारिश ने उन्हें काफी परेशान किया. यही देखते हुए शिक्षकों ने एक ग़ैर-सरकारी संगठन, आर्मर ऑफ़ केयर, की मदद से 30,000 रुपये की लागत से तिरपाल की शीट खरीदीं.

आदिवासी जिस ज़मीन पर रहते हैं, उसके लिए पट्टों की उनकी मांग अभी तक अनसुनी ही रही है. पट्टों के बिना यह लोग इस ज़मीन पर स्थायी मकान नहीं खड़े सकते.

इस मुद्दे पर कई बार विरोध प्रदर्शन किए गए हैं, और अधिकारियों को याचिकाएं भी दी गई हैं. लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ है.

गांव में शौचालय, बिजली कनेक्शन और दूसरी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं. इन हालात का सबसे बुरा असर बस्ती की महिलाओं पर पड़ता है. शौचालय के अभाव में उनके पास नहाने-धोने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है.

इन आदिवासियों के मकानों पर एक नज़र डालते ही साफ़ हो जाता है कि वो कितने खतरनाक हो सकते हैं. ईंट-पत्थरों की चार दीवारें और छत के नाम पर भूसे का एक कामचलाऊ ढांचा. उम्मीद है कि तिरपाल की चादरों से आदिवासियों को घर पर थोड़ी सुरक्षा मिलेगी.

शिक्षक प्रभाकरन कडंबत्तूर में आदिवासी बच्चों के लिए मुफ्त ट्यूशन लेते हैं, और उन्हें उम्मीद है कि वो अरियत्तूर में भी ऐसा कर सकेंगे.

बस्ती में बारहवीं कक्षा का एक छात्र है. अगर उसने इच्छा जताई, तो उसे दूसरे बच्चों के लिए भी ट्यूशन लेने के लिए ट्रेनिंग दी जा सकती है. कोविड महामारी के बाद से अब्दुल कलाम नगर में स्कूल छोड़ने की दर काफ़ी बढ़ गई है.

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