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पीवीटीजी जनसंख्या के आंकड़ों की गड़बड़ी के बीच, आदिवासी बस्ती को बिजली देने की घोषणा

केंद्र सरकार का यह दावा है की पीएम-जनमन (PM JANMAN) के तहत पिछले तीन महीने में पीवीटीजी (विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति) के लिए 7000 करोड़ रूपये आवंटित किए जा चुके है.

विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति(PVTG) उन आदिवासी समुदायों को कहा जाता है. जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हो, जिनकी जनसंख्या घट रही हो और मुख्यधारा समाज से बातचीत करने में झिझकते हो.

देश के 19 राज्यों में 75 पीवीटीजी समुदाय रहते है. इन्हीं पीवीटीजी समुदायों के लिए प्राधनमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिरसा मुंडा की जयंती पर पीएम जनमन की घोषणा की थी.

केंद्र सरकार ने यह भी दावा किया है की पिछले तीन महीनों में दो लाख आधार कार्ड, पांच लाख आयुष्मान कार्ड, 50,000 जन धन एकाउंट बनाए जा चुके है.

इसके अलावा आदिवासी 5 लाख ऐसे आदिवासी परिवारों को भी पीएम किसान निधि का लाभ मिलेगा जिन्हें वन अधिकार कानून 2006 के तहत भूमि पट्टा मिल चुका है.

हाल ही में जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा यह जानकारी दी गई की कर्नाटक के मैसूर में स्थित आदिवासी बस्ती को आज़ादी के 75 साल बाद बिजली सुविधा मिली है.

बिजली सुविधा प्रदान करने के लिए इस आदिवासी बस्ती को चामुंडेश्वरी विद्युत आपूर्ति निगम (सीईएससी) से जोड़ा गया है.

यह भी पता चला है की इस आदिवासी बस्ती के आसपास के सभी गाँव में बिजली पहले से ही उपलब्ध थी.

लेकिन यह आदिवासी बस्ती, कोतानहल्ली कॉलोनी घने जंगलों में स्थित है. जिसके कारण यहां पर रहने वाले आदिवासी को असहाय ही छोड़ दिया गया.

इस कॉलोनी में रहने वाले कुरूबा समुदाय के 20 परिवार दशकों से बिजली सुविधा से वंचित थे. अब इन्हें बिजली प्रदान की जा चुकी है.

सरकार के इन दावों में पारदर्शीता की कमी देखी जा सकती है. क्योंकि सरकार के पास पीवीटीजी के जनसंख्या के सही आकड़े ही मौजूद नहीं है.

नवंबर 2023 तक सरकारी आंकड़ो के अनुसार देश में पीवीटीजी आदिवासियों की कुल आबादी लगभग 28 लाख है.

इसके बाद जनवरी 2024 में सरकार ने अनुमान लगाया कि इनकी जनसंख्या 36.5 लाख हो सकती है. 

इसके बाद जनवरी महीनें में सरकार द्वारा इन आंकड़ों में फिर से बदलाव किया गया और बताया कि पीवीटीजी परिवारों की संख्या 44 लाख से ज़्यादा है.

इसे यह साफ देखा जा सकता है की केंद्र सरकार को पीएम-जनमन के तहत हो रहे काम दिखाने की जल्दी है. इसलिए उन्होंने पीवीटीजी जनसंख्या के आंकड़ों को महत्व नहीं दिया.  

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