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ग्राम सभाओं के अधिकारों का होगा विस्तार, वनाधिकार क़ानून के तहत नए दिशानिर्देश

ग्राम सभाओं के पास अब सामुदायिक वन अधिकार (सीएफ़आर) और निवास के अधिकारों (हैबिटेट राइट्स) के प्रबंधन के लिए अधिक शक्ति होगी. दिसंबर 2020 में जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) द्वारा तैयार किए गए नए दिशानिर्देशों में इन शक्तियों का विस्तार है. छोटी-मोटी वन उपज इकट्ठा करने वाले, महिलाएं और जंगल पर आश्रित अन्य समूहों का भी इन दिशानिर्देशों में ज़िक्र है. सीएफ़आर प्रबंधन के लिए बनाई गई समिति की अध्यक्षता योजना आयोग के सदस्य एनसी सक्सेना ने की, जबकि हैबिटेट राइट्स का उल्लेख मंत्रालय के पूर्व सचिव हरिकेश पांडा ने किया. 

एनसी सक्सेना, सीएफ़आर कमेटी के अध्यक्ष

सीएफ़आर ड्राफ़्ट में कहा गया है कि ग्राम सभाएं पारंपरिक संपर्क वाली दूसरी समितियों के साथ वन्यजीव, वन और जैव विविधता, जलग्रहण क्षेत्रों, और जल स्रोतों के संरक्षण के लिए काम करेंगी. एफ़आरए की धारा 5 के तहत ग्राम सभाओं को सशक्त किया जाएगा. किसी नियम के उल्लंघन की स्थिति में अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत राज्य स्तरीय निगरानी समिति (SLMC) के समक्ष शिकायत दर्ज की जा सकती है. ग्राम सभाएं नियम भी बना सकती हैं, और सीएफआरएमसी द्वारा सुझाए गए संरक्षण और प्रबंधन योजनाओं, रणनीतियों, और कार्यों की देखरेख कर सकती हैं. ज़रूरत पड़ने पर सीएफ़आर शासन और प्रबंधन से संबंधित विवादों का हल करने का अधिकार भी ग्राम सभाओं के पास होगा. ड्राफ़्ट दिशानिर्देशों में एक फ़ंड के माध्यम से ग्राम सभाओं की वित्तीय स्वतंत्रता का भी प्रस्ताव है. इस फ़ंड को वन उपज की बिक्री, सरकार से मिलने वाले विकास अनुदान और गैर-लाभकारी धन के साथ-साथ वनीकरण कोष से धन प्राप्त होगा. 

फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट यानि एफ़आरए के तहत ग्राम सभा पारंपरिक रूप से गांव द्वारा उपयोग किए जाने वाले जंगल के टुकड़े पर सामूहिक स्वामित्व का दावा कर सकती है. यह प्रावधान उन्हें अपने सीएफ़आर क्षेत्र के प्रबंधन और संरक्षण का भी अधिकार देता है. इससे पहले 2015 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी सीएफ़आर के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे, लेकिन उन्हें वापस ले लिया गया था, क्योंकि उसमें ग्राम सभाओं की भूमिका और ज़िम्मेदारियां साफ़ नहीं थी.  

जहां तक निवास के अधिकार या हैबिटेट राइट्स की बात है यह विशेष रूप से एफ़आरए के तहत आदिम जनजाति या पीवीटीजी को दिए जाते हैं. चूंकि पीवीटीजी खेती किसानी नहीं करते, ये अधिकार काफी बड़े क्षेत्र के लिए दिए गए हैं. देश में 75 आदिम जनजातियां हैं, और इनमें से सिर्फ़ कुछ को ही हैबिटेट राइट्स दिए गए हैं. मंत्रालय ने पीवीटीजी के आवास अधिकारों पर विशेष ध्यान देने के लक्ष्य से फ़रवरी, 2020 को एक समिति का गठन किया था. समिति ने पाया कि एफ़आरए इन आदिवासियों के निवास स्थान को परिभाषित नहीं करता है, बल्कि सिर्फ़ इसके महत्व की बात करता है. एफ़आरए के अनुसार आदिवासियों के उनके निवास स्थान से आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आजीविका के मामले जुड़े हैं. 

हैबिटेट राइट्स के दिशानिर्देशों में निवास के अधिकारों और सीएफ़आर के बीच अंतर बताया गया है. इसके मुताबिक़ सीएफ़आर इन समूहों की आजीविका, समुदाय की उसके परिदृश्य से आध्यात्मिक संबंध से ज़्यादा महत्वपूर्ण है. ड्राफ़्ट के अनुसार अपने वंश से संबंधित सभी धार्मिक या सांस्कृतिक समारोह करने का अधिकार इन समूहों को है. इसके अलावा प्राकृतिक संस्थाओं और पवित्र स्थलों की रक्षा और संरक्षण का अधिकार; धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों जैसे पवित्र उपवन की रक्षा और संरक्षण का अधिकार; जंगलों में देवताओं के निवास स्थान, पहाड़ी की चोटी, नदियों के उद्गम और जंगलों के अन्य दूरदराज के हिस्सों में जाने का अधिकार भी इसमें दिया गया है. हैबिटेट राइट्स के तहत पारंपरिक खेती प्रणालियों और आजीविका पैदा करने वाली अन्य गतिविधियों का अभ्यास करने का अधिकार भी है, लेकिन वन्य जीवों के शिकार का अधिकार इसमें नहीं है. 

ड्राफ़्ट में एफ़आरए और हैबिटेट राइट्स के महत्व को बेहतर ढंग से समझने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों के प्रशिक्षण की भी सिफारिश है. 

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