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गुजरात में 1.25 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे, आदिवासी जिला नर्मदा लिस्ट में सबसे ऊपर

गुजरात सरकार ने गुरुवार को राज्य विधानसभा को सूचित किया कि राज्य के 30 जिलों में लगभग 1.25 लाख कुपोषित बच्चे हैं. इनमें से लगभग 24 हजार गंभीर कुपोषित श्रेणी में हैं. वहीं आदिवासी बहुल नर्मदा जिला सूची में सबसे ऊपर है.

महिला एवं बाल विकास मंत्री भानुबेन बाबरिया ने प्रश्नकाल के दौरान कई कांग्रेस विधायकों द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब में सदन को ये जानकारी दी.

आंकड़ों के मुताबिक, नर्मदा जिला 12 हजार 492 कुपोषित मामलों के साथ शीर्ष पर है, इसके बाद वडोदरा में 11 हज़ार 322 मामले हैं, आणंद में 9 हजार 615, साबरकांठा में 7 हजार 270, सूरत में 6 हजार 967 मामले और भरूच 5 हजार 863 मामले हैं.

पिछले दो वर्षों में कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई या कमी, इस सवाल के जवाब में कहा गया कि आंगनबाड़ी केंद्र पिछले दो वर्षों (15 मार्च, 2020 से 2 फरवरी, 2022 तक) तक कोविड-19 महामारी के कारण बंद होने के चलते सरकार जवाब देने में असमर्थ है.

सरकार ने कहा कि महामारी के दौरान कुपोषण को समाप्त करने के उपाय के रूप में लाभार्थियों को हर हफ्ते सुखड़ी, एक पारंपरिक मिठाई वितरित की गई थी.

साथ ही मंत्री ने कहा कि 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को आंगनबाड़ियों में गर्म नाश्ता और दोपहर का भोजन दिया जाता है. इसके अलावा लिखित जवाब में दावा किया गया कि बच्चों को सप्ताह में दो बार फल भी बांटे जाते हैं। यह भी कहा कि सरकार छह महीने से तीन साल तक के बच्चों के लिए टेक-होम राशन “बाल-शक्ति” के सात पैकेट देती है.

कहा गया है कि सरकार कुपोषण से निपटने के लिए बच्चों और उनकी माताओं को डबल फोर्टिफाइड नमक, फोर्टिफाइड तेल के साथ-साथ गेहूं का आटा भी मुहैया कराती है.

सरकार के जवाब पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्षी कांग्रेस नेता अर्जुन मोढवाडिया ने कहा, ” माना जाता है कि गुजरात में देश के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे है. 27 साल तक राज्य में शासन करने के बावजूद भाजपा सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम नहीं उठाए हैं.”

उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह संबंधित विभाग को सशक्त करे और इसके समाधान के लिए प्रभावी व्यवस्था बनाए.

कुल मिलाकर सरकार ने कुपोषित बच्चों में वृद्धि के लिए कोविड-19 महामारी को जिम्मेदार ठहराया है और कहा कि क्योंकि ज्यादातर आंगनवाड़ी केंद्र मार्च 2020 को बंद कर दिया गया था और फिर दोबारा फरवरी 2022 से खोला गया. महामारी के कारण वर्तमान में यह पता लगाना असंभव है कि कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है या घटी है.

लेकिन गुजरात जैसे विकसित राज्य से आदिवासी बच्चों में कुपोषण के बढ़ने की ख़बर चौंकाने वाली होने के साथ साथ चिंता की बात भी है.

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