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केले के तनों से बने कागज पर छपेगी कहानियां

छोटा उदयपुर में स्कूली बच्चों के लिए कहानी की किताबें जल्द ही इस आदिवासी क्षेत्र में उगाए गए केले के तनों से हाथ से बने कागज पर प्रकाशित की जाएंगी. जो कि इको-फ्रेंडली भी है. केले के तने से रंगीन कागज बनाने की एक सफल पायलट परियोजना के बाद यह पहल प्रकाशन में स्थिरता का एक नया मार्ग प्रशस्त करेगी.

छोटा उदयपुर के तेजगढ़ में आदिवासी अकादमी ने पिथौरा पेंटिंग के रूप में कहानियों को डिजाइन करना शुरू कर दिया है. जो इन पन्नों पर पुस्तकों के रूप में प्रकाशित की जाएंगी. केले के तने से हाथ से बना कागज कोरोना महामारी के दौरान आदिवासी अकादमी के एक इंटर्न द्वारा किए गए एक प्रयोग का परिणाम था.

इंटर्न रवि राज ने कहा, “मैंने अतीत में हाथ से बने कागजों पर काम किया है और क्योंकि आदिवासी अकादमी केले के तने के कचरे से धागा या कागज बनाने की खोज कर रही थी. इसलिए मैंने इसके बारे में रिसर्च करना शुरू कर दिया और कागज बनाया.” अब रवि राज एक आदमी को ये पेपर बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं.

आदिवासी अकादमी के निदेशक डॉ मदन मीणा ने कहा, “अभी हम इन कहानी की किताबों को डिजाइन कर रहे हैं. लेकिन आगे जाकर इस क्षेत्र में केले के किसानों को केले का पेपर बनाने के लिए प्रशिक्षित करने का विचार है. हम उन्हें ट्रेनिंग देंगे और इसे बनाने के लिए तकनीक भी देंगे ताकि वे बिना कोई पैसा लगाए बेकार पड़े कचरे से नई आजीविका ढूंढ सकें.”

छोटा उदयपुर में केले की खेती बहुत ज्यादा मात्रा में होती है और केला फलने के एक मौसम के बाद पौधे को छोड़ दिया जाता है. रवि राज ने कहा, “जबकि अन्य पौधे जल्दी सड़ जाते हैं, केले के पौधे सड़ने में बहुत लंबा समय लेते हैं और वे आसानी से जलते भी नहीं हैं.”

रवि राज ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि केले के कागज़ात का इस्तेमाल दस्तावेज़ीकरण और अभिलेखों के संग्रह के लिए सबसे अच्छा किया जा सकता है क्योंकि इसकी तन्यता ताकत किसी भी अन्य कागज से अधिक होती है. लेखन के अलावा कागज के अलग अलग उपयोग हैं. पौधों के कचरे से बने कागजों का उपयोग पैकेजिंग, आंतरिक और कला सजावट के लिए किया जा सकता है.

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