Mainbhibharat

गुर्जर-बकरवाल ने एसटी सूची के विस्तार के कदम के खिलाफ बनायी मार्च की योजना

जम्मू और कश्मीर में आदिवासी संगठन पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के फ़ैसले से नाराज़ है. इन संगठनों ने कहा है कि वे अपने कानूनी और संवैधानिक अधिकारों और उनके आरक्षण को कम करने के किसी भी कदम का विरोध करेंगे.

इस के लिए गुर्जर-बकरवाल संयुक्त कार्रवाई समिति का गठन किया है. नवगठित मंच ने 4 नवंबर को कश्मीर के बारामूला से जम्मू के कठुआ तक शांतिपूर्ण विरोध मार्च ‘जनजातीय बचाओ मार्च’ का आह्वान किया है.

मार्च के आयोजकों का दावा है कि इसका उद्देश्य दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के बीच अनुसूचित जनजाति के दर्जे को कम आंकने के खिलाफ जागरूकता फैलाना है.

गुर्जर, बकरवाल समुदाय के सदस्य तब से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं जब से नई दिल्ली में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने यह महसूस कराया कि पहाड़ी समुदाय को भी एसटी का दर्जा दिया जाएगा.

इस महीने की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर की अपनी यात्रा के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बारामूला में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 और जीडी शर्मा आयोग की सिफारिशों को निरस्त करने के बाद, गुर्जरों, बकरवालों और पहाड़ियों को आरक्षण मिलेगा.

शाह ने कहा था कि कुछ लोग गुर्जरों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं कि उनका कोटा कम किया जाएगा. लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि उनका कोटा किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगा और उन्हें वह मिलेगा जो उन्हें पहले मिल रहा था.

दरअसल, जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय के लोग काफी दिनों से मांग कर रहे हैं कि बारामूला और अनंतनाग जिलों के अलावा पीर पंजाल क्षेत्र के दुर्गम और पिछड़े इलाकों में गुर्जर और बकरवाल की तरह उन्हें भी अनुसूजित जनजाति का दर्जा दिया जाए.

हालांकि, गुर्जर और बकरवाल के लोग पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा मिलने का विरोध करते हैं. इसका आधार यह है कि पहाड़ी समुदाय कोई एक जातीय समूह नहीं हैं बल्कि विभिन्न धार्मिक और भाषाई समुदायों का समूह हैं.

गुर्जर और बकरवाल को पहले से ही एसटी का दर्जा प्राप्त है. अब इन आदिवासियों द्वारा पहाड़ियों को एसटी के रूप में मान्यता देने के मुद्दे पर नाराजगी जताई जा रही है.

कश्मीर में पहाड़ी भाषी लोगों की संख्या 8 लाख से 12 लाख के बीच बताई जाती है. जबकि गुज्जर और बकरवाल की संख्या 15 लाख से ज़्यादा मानी जाती है. इसलिए बीजेपी को इस मामले में काफी सोच समझ कर काम करना होगा. क्योंकि गुज्जर और बकरवाल समुदायों में यह आशंका है कि पहाड़ी भाषी लोगों को एसटी लिस्ट में शामिल किए जाने से उनका हक़ मारा जाएगा.

जम्मू-कश्मीर में अगर पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा दिया जाता है, तो यह भारत में आरक्षण अर्जित करने वाले भाषाई समूह का पहला उदाहरण होगा. ऐसा होने के लिए केंद्र सरकार को संसद में आरक्षण अधिनियम में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी.

Exit mobile version