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जंगल की ज़मीन पर एकलव्य स्कूल की इजाज़त कैसे दी गई

ओडिशा के केओंझर ज़िले में बने एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) को लेकर केंद्र सरकार ने सख्ती दिखाई है.

केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने ओडिशा सरकार से उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है जिन्होंने केओंझर ज़िले में बिना ज़रूरी वन अनुमति के इस एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) का निर्माण होने दिया.

यह मामला पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (Forest Advisory Committee ) की 26 सितंबर को हुई बैठक में सामने आया था.

इस बैठक में समिति ने पाया था कि वन भूमि पर स्कूल की इमारत का निर्माण बिना पर्यावरण मंत्रालय की इजाज़त के किया गया. यह वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 का उल्लंघन माना गया है.

अब इस मामले में केंद्र ने संबंधित अधिकारियों पर कार्यवाई करने के निर्देश दिए हैं.

कैसे शुरू हुआ मामला

यह स्कूल ओडिशा सरकार और जनजातीय कार्य मंत्रालय की संयुक्त पहल के तहत बनाया गया था.

यह स्कूल केओंझर ज़िले के पटनागढ़ तहसील के एरेंडेई गांव में बनाया गया है. यह स्कूल 2.803 हेक्टेयर ऐसी भूमि पर बना है जो वन भूमि के रूप में दर्ज है. इसमें 0.456 हेक्टेयर गैर-वन भूमि भी शामिल है.

ज़िला प्रशासन का कहना है कि जब यह निर्माण शुरू हुआ था, तब ज़मीन के रिकॉर्ड में इसे “गैर-वन भूमि” बताया गया था.

बाद में पुराने रिकॉर्ड की जांच में पता चला कि यह ज़मीन पहले “जंगल किस्म” के रूप में दर्ज थी.

ज़िला प्रशासन का पक्ष

ज़िला प्रशासन ने इस चूक को स्वीकार करते हुए कहा कि निर्माण कार्य सद्भावना से किया गया था.

राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, जैसे ही भूमि रिकॉर्ड में गलती का पता चला, तहसीलदार ने बिना किसी देरी के पूरे मामले की जानकारी ज़िला कल्याण अधिकारी और कलेक्टर को दी.

उस समय विद्यालय का निर्माण कार्य पहले से जारी था, लेकिन फिर भी प्रशासन ने वन विभाग को तुरंत सूचित किया. इसके बाद, वन विभाग से औपचारिक अनुमति प्राप्त करने और इस त्रुटि को वैधानिक रूप से ठीक करने (यानी ‘नियमित’ करने) के लिए वन भूमि के उपयोग में बदलाव (land diversion) का प्रस्ताव भेजा गया.

इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह था कि जिस भूमि पर निर्माण हुआ है, उसे कानूनी रूप से शिक्षा परियोजना के उपयोग के लिए स्वीकृत कराया जा सके.  

समिति की सख्त टिप्पणी

वन सलाहकार समिति ने इसे गंभीर त्रुटि माना और कहा कि राज्य सरकार को इस मामले की जांच कर ज़िम्मेदार अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए.

साथ ही समिति ने सिफारिश की कि इस उल्लंघन के लिए दंड के रूप में वन भूमि के एनपीवी (Net Present Value) के बराबर राशि हर साल के लिए वसूली जाए, अधिकतम पांच गुना एनपीवी और 12 प्रतिशत साधारण ब्याज के साथ.

भुवनेश्वर स्थित पर्यावरण मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह लोक उपयोग की परियोजना है इसलिए वन भूमि के परिवर्तन (डायवर्ज़न) की अनुमति दी जा सकती है.

हालांकि उन्होंने भी यह सुझाव दिया कि पांच गुना दंडात्मक एनपीवी, दंडात्मक क्षतिपूरक वनीकरण (penal CA) और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए.

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