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असम के टी ट्राइब की पहचान संकट में, जाति प्रमाण पत्र की कर रहे माँग

12 अगस्त 2025 को असम के तिनसुकिया जिले के माकुम क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग-37 पर एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुआ, जिसे ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स एसोसिएशन ऑफ असम (AASAA) ने आयोजित किया.

इस प्रदर्शन का उद्देश्य सरकार से यह मांग करना था कि असम के चाय बगानों में काम करने वाले आदिवासी समुदायों को उनकी वास्तविक जातियों के आधार पर प्रमाण-पत्र दिए जाएँ.

अभी तक इन समुदायों को केवल चार सामान्य श्रेणियों में बाँटा गया है—टी गार्डन लेबरर्स, टी गार्डन ट्राइब्स, एक्स-टी गार्डन लेबरर्स और एक्स-टी गार्डन ट्राइब्स.

यह वर्गीकरण न केवल उनकी विशिष्ट जातिगत पहचान को मिटाता है बल्कि उनके अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच में भी बाधा बनता है.

AASAA का कहना है कि ये समुदाय वर्षों पहले ब्रिटिश शासन के दौरान झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा से असम लाए गए थे.

वहां उन्हें संथाल, मुंडा, उराँव, भुमिज, खड़िया, महली जैसी पहचान मिली हुई है और उन राज्यों में वे अपने मूल नामों से प्रमाण-पत्र प्राप्त करते हैं.

लेकिन असम में उन्हें सिर्फ ‘टी गार्डन’ जैसे व्यापक और अस्पष्ट वर्गों में रखा गया है.

इससे न सिर्फ उनकी सांस्कृतिक पहचान को नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकारी योजनाओं, आरक्षण, शिक्षा और रोजगार जैसे अवसरों से भी वंचित होना पड़ रहा है.

AASAA ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर राज्य सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती, तो वे आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का बहिष्कार करेंगे.

यह संगठन पहले भी कई बार इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन कर चुका है.

फरवरी और जून 2025 में डिब्रूगढ़ जिले में भी छात्रों और श्रमिकों ने मिलकर आंदोलन किए थे.

वहां उन्होंने यह मांग की थी कि आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाए, न्यूनतम मजदूरी ₹550 प्रति दिन की जाए, बगान श्रमिकों को भूमि का पट्टा मिले और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को आजीवन मुफ्त चिकित्सा सुविधा दी जाए.

AASAA का यह भी आरोप है कि असम सरकार आदिवासी समुदायों को जानबूझकर मुख्यधारा से अलग रख रही है.

उनका कहना है कि जब तक इन समुदायों को उनकी असली जातियों के नाम से प्रमाण-पत्र नहीं मिलेगा, तब तक वे सरकार की नीतियों से पूरी तरह लाभ नहीं उठा सकेंगे.

इसी संदर्भ में संगठन ने “No ST, No Votes” का नारा भी दिया है, जो हाल ही में असम के कई जिलों में हुए विरोध प्रदर्शनों में सुनाई दिया.

इस पूरे मुद्दे की गंभीरता इस बात से भी स्पष्ट होती है कि दिसंबर 2023 में ही असम चाय जनगोष्ठी जातीय महासभा ने आरोप लगाया था, कि 108 में से 30 से अधिक उप-जातियों को अब तक जाति प्रमाण-पत्र नहीं दिया गया है, जिससे हजारों परिवार सरकारी योजनाओं से वंचित रह गए हैं.

उनका जीवन पहले ही कठिन है और जब उनके पास पहचान का दस्तावेज़ नहीं होगा, तो उनकी स्थिति और भी बदतर हो जाएगी.

यह मांग केवल एक प्रमाण-पत्र की नहीं है, यह एक पूरे समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी लड़ाई है.

वे चाहते हैं कि उन्हें वह मान्यता मिले जिसके वे हकदार हैं.

सरकार के पास अब विकल्प कम हैं—या तो वह इन समुदायों की आवाज सुने और उचित कदम उठाए, या फिर यह आंदोलन आने वाले समय में और तेज़ हो जाएगा, खासकर चुनाव के करीब.

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