Mainbhibharat

उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण नीति की अनदेखी, कई IIM में एक भी आदिवासी, दलित प्रोफ़ेसर नहीं

एक आरटीआई के माध्यम से सामने आया है कि देश के प्रतिष्ठित मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट आईआईएम (IIM)  में शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण नीति को पूरी तरह से फ़ॉलो नहीं किया जा रहा है.

पिछले कुछ सालों में नए आईआईएम संस्थानों ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों से शिक्षकों (faculty members) को नियुक्त करने में कुछ प्रगति की है. लेकिन पुराने और ज़्यादा प्रतिष्ठित आईआईएम में ये समुदाय कुल शिक्षकों का 10% से भी कम हिस्सा हैं.

यह आरटीआई IIM-बेंगलूरु के एक पीएचडी ग्रैजुएट ने दायर की थी.

ग्लोबल एलमनाई नेटवर्क, जिसमें आईआईटी और आईआईएम के 300 पूर्व छात्र इन संस्थानों में सामाजिक न्याय की बात करते हैं, ने प्रगति का स्वागत किया है. लेकिन वो पूछते हैं कि पुराने आईआईएम संस्थानों को कानून तोड़ने की अनुमति क्यों दी जा रही है.

IIM-A का कोई डेटा नहीं

IIM- कोलकाता में कोई एससी या एसटी शिक्षक नहीं है. हालांकि यहां दो OBC फ़ैकल्टी सदस्य हैं, जो कुल फ़ैकल्टी का 3 प्रतिशत हैं. IIM-बेंगलूरु में रक्षित श्रेणियों के शिक्षकों का प्रतिशत 6 है – 3 एससी, 1 एसटी और 2 ओबीसी समुदाय से.

IIM-अहमदाबाद का कहना है कि वो फ़ैकल्टी की श्रेणी की जानकारी नहीं रखता है. इसके अलावा IIM-लखनऊ में आरक्षित श्रेणियों के फ़ैकल्टी सदस्य 5% से कम हैं, जबकि केरल के कोझीकोड में यह 10% से कम है.

अहमदाबाद की तरह ही IIM-इंदौर ने भी आरटीआई के जवाब में जानकारी नहीं दी, यह कहकर कि उनके पास यह उपलब्ध नहीं है. यह सभी डेटा दिसंबर 2020 तक का है.

हालांकि, नए आईआईएम संस्थानों का प्रदर्शन बेहतर है. IIM-शिलांग में आरक्षित श्रेणियों के फ़ैकल्टी सदस्य कुल सदस्यों में 30% से ज़्यादा हैं, जबकि रायपुर में 25% और जम्मू में 22% से ज़्यादा है.

लेकिन, IIM-नागपुर में किसी भी आरक्षित वर्ग से एक भी फ़ैकल्टी सदस्य नहीं है.

Exit mobile version