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मध्य प्रदेश: आदिवासी लड़कियों के स्कूलों को प्राइवेट हाथों में देने की तैयारी

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने राज्य में आदिवासी लड़कियों के लिए बनाए गए स्कूलों में गुजरात मॉडल लागू करने का फ़ैसला किया है. राज्य सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों में 92 सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला किया है.

अधिकारियों ने बताया कि सरकार ने गुजरात के स्कूल मॉडल को अपनाते हुए आदिवासी क्षेत्रों में 92 सरकार स्कूलों को सरकार और निजी भागीदारी यानी पीपीपी (public-private partnership) मोड के तहत चलाने के लिए उन्हें निजी हाथों में सौंपने का फैसला किया है.

इस व्यवस्था के तहत राज्य सरकार ने आदिवासी बच्चियों के लिए 82 कन्या शिक्षा परिसर और 10 उत्कृष्ट स्कूलों को चलाने का निर्णय लिया है.

नई नीति के मुताबिक, सरकार स्कूलों को चलाने के लिए धन उपलब्ध कराएगी जबकि निजी प्लेयर स्कूलों का रखरखाव और संचालन करेंगे.

अधिकारियों ने कहा कि यह नीति बनाने से पहले इसे पिछले साल अप्रैल में राज्य के सीहोर जिले में आजमाया गया था. जब राज्य कैबिनेट ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सूर्या फाउंडेशन को कन्या शिक्षा परिसर चलाने को दिया था.

राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, “स्कूलों को एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल की तरह चलाया जाएगा. प्राइवेट पार्टनर शिक्षकों और कर्मचारियों का चयन करेगा. सरकारी शिक्षक भी वहां काम करने के लिए आवेदन कर सकते हैं.”

आदिवासी कल्याण विभाग की प्रमुख सचिव पल्लवी जैन गोहिल ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षा में छात्रों का अधिकतम चयन सुनिश्चित करने के साथ छात्रों के ज्ञान के स्तर को बढ़ाने की जिम्मेदारी प्राइवेट पार्टनर की होगी.

उन्होंने कहा कि शुरुआती कॉन्ट्रैक्ट कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों की प्रगति को मापने के लिए सात साल के लिए होगा.

अधिकारियों ने दावा किया कि ये स्कूल सरकार को गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी की समस्या को दूर करने में सक्षम बनाएंगे. राज्य में एक बड़ी समस्या जहां 89 आदिवासी विकास खंडों के स्कूलों में कई पद खाली हैं.

पिछले साल अक्टूबर में सरकार ने सूचना के अधिकार के अनुरोध के जवाब में कार्यकर्ता पुनीत टंडन को बताया था कि मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों के 889 उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में से 692 में प्रिंसिपल नहीं हैं और 755 में साइंस के टीचर नहीं हैं.

हालांकि, कुछ जानकारों का कहना है कि शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए प्राइवेट पार्टनर को शामिल करना समाधान नहीं था. उनका कहना है कि आदिवासी इलाक़ों में बेहतर शिक्षा की ज़िम्मेदारी निजी हाथों में देने की समझ ग़लत है.

वहीं राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा कि सरकार हर चीज का निजीकरण कर रही है. काला पीपल के कांग्रेस विधायक कुणाल चौधरी ने कहा, “वे सरकारी संपत्तियों को बेच रहे हैं, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को निजी मेडिकल कॉलेजों को सौंप रहे हैं. और अब स्कूलों का भी निजीकरण कर रहे हैं. भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार भविष्य में विकास के नाम पर हर चीज का निजीकरण कर देगी. चीजों को सुधारने के बजाय सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही है.”

इस मामले में राजनीतिक आलोचनाएँ अपनी जगह पर हैं, लेकिन यह कदम आदिवासी इलाक़ों में बेहतर शिक्षा के अवसर प्रदान कर सकता है.

लेकिन सरकार को इन स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी की एक मज़बूत व्यवस्था भी बनानी होगी. क्योंकि आदिवासी लड़कियों के चलाए जा रहे स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती निजी क्षेत्र के हाथ में होगी.

इसलिए शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के साथ साथ यह देखना भी ज़रूरी होगा कि वे आदिवासी समुदायों के प्रति किस तरह की समझ रखते हैं.

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