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तमिलनाडु: कोविड काल में आदिवासी बस्तियों में बाल विवाह के मामलों में बढ़ोत्तरी

कोविड महामारी में जहां एक तरफ़ बीमारी की जकड़ में लोग दम तोड़ रहे हैं, वहीं देश के कई हिस्सों में बच्चों को शादी के बंधन में बांधकर उनके सपने और उनका भविष्य अंधकार में धकेला जा रहा है.

बाल अधिकार संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) के अनुसार मई के महीने में तमिलनाडु में बाल विवाह के मामलों में बढ़ोत्तरी होती है. संगठन का कहना है कि राज्य में पिछले साल मई में बाल विवाह के मामलों में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. तब कुल 318 मामले दर्ज किए गए थे.

बाल विवाह ख़ासकर सेलम, धर्मपुरी, रामनाथपुरम और डिंडीगुल (कोडाईकनाल) ज़िलों की 72 आदिवासी बस्तियों और 10 ब्लॉकों में ज़्यादा पाया गया है.

CRY के मुताबिक़ इस साल कोविड-19 का सामाजिक जीवन पर काफ़ी बुरा असर हुआ है. ऐसे में अगर समय पर हस्तक्षेप नहीं किया गया तो बाल-विवाह अधिनियम का उल्लंघन बढ़ सकता है.

स्थिति को बदतर बनाने के लिए मई के महीने में विवाह करने के लिए कई शुभ दिन और मुहूरत होते हैं.

आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवारों को लॉकडाउन के दौरान कम ख़र्च पर अपने बच्चों की शादी करवाना एक बेहतर विकल्प लगता है.

कोविड काल में आमतौर पर 10,000 से 20,000 रुपये के बीच शादी संपन्न हो सकती है. इन हालात में वर-वधु की उम्र मां-बाप के लिए ज़्यादा मायने नहीं रखती.

CRY के आंकड़ों के अनुसार, सेलम में मई 2019 में 60 बाल विवाह दर्ज किए गए, जबकि मई 2020 में ऐसे 98 मामले सामने आए. धर्मपुरी में 2019 में लगभग 150 मामले देखे गए थे, जो इस साल 192 हो गए.

2011 की जनगणना के अनुसार, 0-19 वर्ष की आयु की 8.69 प्रतिशत लड़कियों की शादी तमिलनाडु में होती है. धर्मपुरी (11.9%) और सेलम (10.9%) बाल विवाह के मामले में सबसे आगे हैं.

कर्नाटक में भी पिछले साल बाल विवाह के कई मामले सामने आए. लॉकडाउन प्रतिबंधों का फ़ायदा उठाकर कई परिवार घरों के अंदर बाल विवाह करवा रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता है कि मौजूदा लॉकडाउन में भी यही हो सकता है.

कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (KSCPCR) के मुताबिक़ अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 तक चाइल्डलाइन की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल 2,180 बाल विवाह के मामले सामने आए हैं.

इन हालात में कोविड की दूसरी लहर के बीच बाल विवाह के मामलों पर लगाम लगाना बेहद मुश्किल हो सकता है. ज़रूरत है निरंतर निगरानी की, और यह सुनिश्चित करने की कि ग़रीब परिवारों को उचित मदद मिले, ताकि वह नाबालिगों को बोझ के तौर पर न देखें.

(इस आर्टिकल में इस्तेमाल की गई तस्वीर प्रतीकात्मक है)

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