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भारत के पहले आदिवासी कार्डिनल तेलेस्फोर प्लासीडस पी टोप्पो का हुआ निधन

आजकल दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो उच्च पद हासिल करने के बाद भी असहायों, गरीबों, और आदिवासियों की सहायता करते है या उनके हक के लिए लड़ते हैं.

लेकिन जब ऐसे व्यक्ति का निधन हो जाता है. तब सब लोग मिलकर उस व्यक्ति का सम्मान करते है और उनकी शोक यात्रा को एक प्रसिद्ध व्यक्तियों की तरह बना देते हैं.

ऐसे ही एक व्यक्ति हैं. जिनका निधन कल हुआ है. जो आदिवासियों के पहले कार्डिनल होने के साथ-साथ असहायों, गरीबों, और आदिवासियों की सहायता भी करते थे. उनका नाम टेलीस्फोर प्लासीडस टोप्पो है.

दरअसल कल यानी बुधवार को 84 वर्षीय पी टोप्पो यानी टेलीस्फोर प्लासीडस टोप्पो का निधन हो गया है और यह बताया गया है कि उनका अंतिम संस्कार शनिवार यानि 7 तारीख को किया जाएगा.

जिसमें रोम के साथ-साथ देश-विदेश के कई प्रतिनिधियों के शामिल होना का दावा भी किया जा रहा है.

तेलेस्फोर प्लासीडस टोप्पो के निधन का समय दोपहर 3:45 बजे बताया जा रहा है और उनके निधन का कारण फेफड़े में पानी भर जाने के बाद स्थिति गंभीर होने का बताया गया है.

इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि उनकी सेहत मंगलवार को ज्यादा खराब हो गई थी. जिसके बाद उन्हें झारखंड की राजधानी रांची के मांडर के कांस्टेंट लीवर अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कराया गया था और फिर वहां उनकी तबियत ज्यादा खराब होने कारण कल उनका निधन इसी अस्पताल में हो गया था.

तेलेस्फोर प्लासीडस टोप्पो के निधन पर शोक जताया

तेलेस्फोर प्लासीडस टोप्पो के निधन पर गवर्नर सीपी राधाकृष्णन ने ट्विटर पर शोक जताते हुए लिखा की कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो के निधन की खबर बेहद दुखद और कष्टदायक है. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देता हूं और उनके प्रियजनों के प्रति मैं गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं.

इसके साथ ही मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी शोक जताते हुए लिखा है कि धर्मगुरु कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो जी के निधन का अत्यंत दुःखद समाचार मिला है. वह लोगों की सेवा करते हुए और उनके हक-अधिकारों के लिए हमेशा सजग रहते थे. प्रभु दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान कर शोकाकुल लोगों को दुःख की यह विकट घड़ी सहन करने की शक्ति दे.

इसके अलावा उनके निधन पर मसीही समुदाय भी शोक जाता रहे है और सहायक धर्माध्यक्ष थियोडोर मस्करेंहास ने कहा कि हमारे कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो परमपिता के पास लौट गए हैं.

इसके साथ ही सहायक धर्माध्यक्ष थियोडोर मस्करेंहास ने कहा है की रांची आर्च डायसिस हमेशा उनका आभारी रहेगा क्योंकि पी टोप्पो ने छोटानागपुर चर्च के विकास में अपार योगदान दिया है और उन्होंने आर्च बिशप की देखभाल करने वाले अस्पताल के कर्मचारियों का भी धन्यवाद किया है.

आर्च बिशप ने बताया कि तेलेस्फोर पी टोप्पो के अंतिम संस्कार मास के आयोजन पर रांची आर्च डायसिस जल्द ही निर्णय लेगी.

तेलेस्फोर प्लासीडस टोप्पो की जीवन शैली

आर्चबिशप तेलेस्फोर प्लासीडस कार्डिनल टोप्पो भारत के पहले आदिवासी कार्डिनल थे. जिनका जन्म 15 अक्टूबर 1939 में पूर्वी भारत के झारखंड राज्य के गुमला सूबे (झारखण्ड में प्रशासनिक क्षेत्र 4) के झारगांव में हुआ था.

उनकी मातृभाषा कुड़ुख थी. लेकिन इसके अलावा उन्हें अंग्रेजी, फ्रेंच सहित कई भाषाओं की अच्छी जानकारी भी थी.

टोप्पो को 8 मई 1969 को स्विट्जरलैंड के बेसल में बिशप फ्रांसिस्कस द्वारा एक पुजारी नियुक्त किया गया था.

फिर वह एक युवा पुजारी के रूप में भारत लौट आए और उन्हें तोरपा में सेंट जोसेफ हाई स्कूल में पढ़ाने का काम सौंपा गया.

जिसके बाद उन्हें 8 नवंबर 1984 में पोप जॉन पॉल द्वितीय (Pope John Paul II) ने रांची के कोएडजुटर आर्कबिशप (Coadjutor Archbishop) के रूप में नामित (Nominated) किया था.

फिर उन्हें 7 अगस्त 1985 को रांची के आर्कबिशप के रूप में नियुक्त किया गया था और 25 अगस्त 1985 में उनकी आर्कबिशप के रूप में स्थापना हुई थी.

इसके साथ ही वह दुमका के बिशप (Bishop of Dumka) सन् 1978 से 1984 तक थे और रांची के आर्कबिशप (Archbishop of Ranchi) के रुप में सन् 1985 से लेकर 2018 तक थे.

इसके साथ ही तेलेस्फोर पी टोप्पो भारत के पहले ऐसे आदिवासी थे जिन्हें पोप के कैबिनेट में जगह मिली थी.

इसके अलावा उन्होंने 35 वर्षों तक रांची के आर्कबिशप रहे थे. लेकिन उन्होंने कैनन कानून (Canon law) के अंतर्गत बिशप पद से इस्तीफा दे दिया था.

इस कानून की घोषणा रोम में पोप फ्रांसिस (Pope Francis) ने जून सन् 2018 में की थी. जिसके अंतर्गत एक आर्कबिशप 75 वर्ष की आयु तक ही सेवा कर सकता है.

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