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पाहड़ियों के लिए ST दर्जे को लोकसभा की मंजूरी पर विरोध के बीच जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में इंटरनेट निलंबित

जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के पहाड़ी जातीय समूह (Paharis) को अनुसूचित जनजाति (Scheduled tribe) का दर्जा देने का विधेयक मंगलवार को लोकसभा से पास कर दिया गया.

ऐसे में पहाड़ी लोगों को भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाले विवादास्पद आरक्षण विधेयक को लोकसभा की मंजूरी के खिलाफ छिटपुट विरोध प्रदर्शन के बाद बुधवार को पीर पंजाल क्षेत्र के दो जिलों में मोबाइल इंटरनेट निलंबित कर दिया गया.

प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि विधेयक के खिलाफ आदिवासी गुज्जर और बक्करवाल समुदायों द्वारा विरोध प्रदर्शन की आशंकाओं के बीच बुधवार को पीर पंजाल में सुरक्षा तैनाती बढ़ा दी गई और बंदूकधारी पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों ने पुंछ और राजौरी जिलों में कुछ स्थानों पर चौकियां स्थापित कीं.

हालांकि दोनों जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवा के निलंबन के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई थी. लेकिन सरकारी सूत्रों के हवाले से पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह निर्णय “अफवाह फैलाने वालों को रोकने और लोगों को किसी भी कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा करने से रोकने के लिए एहतियाती उपाय” है.

उमर अबदुल्ला को रैली करने से रोका

नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बुधवार को क्षेत्र में एक पार्टी रैली को संबोधित करने से भी रोक दिया.

उमर बुधवार को पुंछ के सुंदरबनी इलाके में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करने वाले थे, जहां करीब 3 हज़ार पार्टी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं की भीड़ इकट्ठा हुई थी.

पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि जम्मू के भटिंडी इलाके में डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला के आवास, जहां से उमर बुधवार सुबह पुंछ के लिए रवाना होने वाले थे, दोनों मुख्य द्वार और नियंत्रित पहुंच मार्ग को बाहर से बंद कर दिया गया था.

प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि सुंदरबनी में इकट्ठे हुए कई पार्टी कार्यकर्ता और नेता निराश थे क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष कार्यक्रम स्थल पर नहीं पहुंच सके.

एनसी प्रवक्ता डार ने कहा, “राजनीतिक दलों को अपने कार्यकर्ताओं तक पहुंचने से रोकना एक अलोकतांत्रिक कृत्य है और हमारी पार्टी प्रशासन के व्यवहार की निंदा करती है.”

विरोध प्रदर्शन

मंगलवार को लोकसभा द्वारा संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश संशोधन विधेयक, 2023 को मंजूरी दी गई, जिसमें पहाड़ी भाषी लोगों को जम्मू-कश्मीर की अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किया गया है. इसके बाद केंद्र शासित प्रदेश के कुछ हिस्सों में छिटपुट विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.

प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि मंगलवार को विधेयक को ध्वनि मत से लोकसभा की मंजूरी मिलने के बाद जम्मू विश्वविद्यालय में मामूली विरोध प्रदर्शन हुआ. आदिवासी नेता जाहिद परवाज़ चौधरी ने कहा, “कुछ आदिवासी छात्रों ने विधेयक के खिलाफ नारे लगाए और विश्वविद्यालय से विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश की.”

चौधरी, जो कि गुज्जर बक्करवाल युवा कल्याण सम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने छात्रों और अन्य आदिवासियों को आरक्षण विधेयक के खिलाफ आवाज उठाने से रोका है.

चौधरी ने विश्वविद्यालय के बाहर कथित सुरक्षा व्यवस्था का एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा, “छात्रों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने से रोकने के लिए विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया है. हममें से कुछ को मंगलवार दोपहर को कोठी बाग पुलिस स्टेशन (श्रीनगर में) में हिरासत में लिया गया.”

आदिवासियों के अधिकार

इससे पहले वकीलों के एक समूह ने मंगलवार को जम्मू के पनामा चौक इलाके में बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन के एक वीडियो में कुछ जम्मू-कश्मीर पुलिस कर्मियों को तीन वकीलों को अपने वाहनों में से एक के पीछे बांधते हुए दिखाया गया है. जिन्होंने “अवैध” और “असंवैधानिक” विधेयक के खिलाफ नारे लगाए थे.

एक वकील को चिल्लाते हुए सुना जा सकता है, “गुर्जर और बक्करवाल (जम्मू-कश्मीर की) तीसरी सबसे बड़ी आबादी हैं, हम सड़कों पर उतरेंगे और अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे. हम उनके अत्याचार से नहीं डरते. हमने सीमावर्ती क्षेत्रों में उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. हमने भारत का झंडा ऊंचा रखा है लेकिन हम आदिवासियों के अधिकारों के साथ कोई खिलवाड़ नहीं होने देंगे.”

विवादास्पद विधेयक के खिलाफ राजधानी श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर के शोपियां, पुलवामा और कुलगाम जिलों से भी मामूली विरोध प्रदर्शन की सूचना मिली है. जो गुज्जरों और बक्करवालों के लिए अस्थायी घर के रूप में काम करते हैं, जो गर्मियों के महीनों के दौरान अपने परिवारों और पशुओं के साथ पीर पंजाल क्षेत्र में आते हैं.

दोनों समूह सांस्कृतिक रूप से कमजोर और आर्थिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त पहाड़ियों को आदिवासी दर्जा देने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ खड़े हो गए हैं. उनका तर्क है कि वे अपने गरीब और दलित समुदायों के लिए आरक्षित नौकरियों और अन्य अवसरों को छीन लेंगे.

वोट की राजनीति

हालांकि, सरकार ने इस आरोप से इनकार किया है, जिसमें कहा गया है कि यह विधेयक नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने के बाद “पिछड़े और दलित वर्गों को सशक्त बनाने” के लिए उठाए गए कई उपायों में से एक है.

मंगलवार को लोकसभा में बोलते हुए नेशनल कांफ्रेस के सांसद हसनैन मसूदी ने मांग की थी कि केंद्र सरकार को यह गारंटी देनी चाहिए कि नए आरक्षण विधेयक के पारित होने के बाद जम्मू-कश्मीर के मौजूदा एसटी के लिए कोटा संरक्षित किया गया है.

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, यह विधेयक जम्मू-कश्मीर में सामाजिक रूप से विभाजित पहाड़ियों की आबादी को राजनीतिक वोट बैंक में बदलने की बीजेपी की योजना का हिस्सा है, जब वह मुस्लिम बहुल कश्मीर में पैठ बनाने के लिए संघर्ष कर रही है.

पार्टी जम्मू-कश्मीर के 12 लाख पहाड़ी भाषी लोगों को लुभाने में लगी हुई है, जो 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से दो दर्जन से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में विधानसभा चुनावों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं.

अक्टूबर 2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राजौरी शहर में भरी भीड़ को बताया था कि पहाड़ी समुदाय को जम्मू और कश्मीर में अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जा रहा है. यह घोषणा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा पहली बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण प्रदान करने के बाद हुई.

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