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नागरहोल टाइगर रिज़र्व से बेदख़ल हुए जेनु कुरुबा आदिवासी, इकोटूरिज़्म के नाम पर जबरन खाली करवाई ज़मीन

आदमी और जानवरों के बीच तकरार की कहानी की एक और कड़ी में कर्नाटक में 6,000 से ज़्यादा जेनु कुरुबा आदिवासी नागरहोल टाइगर रिज़र्व के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं.

इन आदिवासियों का आरोप है कि कानून को अनदेखा कर इकोटूरिज़्म के नाम पर उन्हें जबरन उनकी ज़मीन से हटाया जा रहा है.

जेनु कुरुबा पारंपरिक तौर पर शहद एकत्र करने वाला समुदाय है. और भूमि अधिकारों के लिए उनका संघर्ष 1970 के दशक से चल रहा है. इकोटूरिज़्म को बढ़ावा दिए जाने के चलते अब इस संघर्ष को नई ऊर्जा मिली है.

इस आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना है कि वह व्यक्तिगत भूमि अधिकारों, सामुदायिक अधिकारों और निवास के अधिकारों के लिए सालों से लड़े हैं, लेकिन हर बार उनके दावे खारिज कर दिए जाते हैं. अब तक इन्होंने 4000 से ज़्यादा दावे दायर किए हैं, लेकिन एक भी मंज़ूर नहीं हुआ है.

जिन लोगों को व्यक्तिगत भूमि अधिकार मिले भी, उन्हें अपने घरों का विस्तार करने या भूमि पर खेती करने की अनुमति नहीं मिली है. जेनु कुरुबा आदिवासी जंगल से शहद इकट्ठा करने के अलावा अपनी आजीविका के लिए खेती और जंगल से मिलने वाली दूसरी चीज़ों पर भी निर्भर हैं.

अब इनका आरोप है कि कर्नाटक वन विभाग इन गतिविधियों को न सिर्फ़ बाधित कर रहा है, बल्कि उसने आदिवासियों के खिलाफ भी मामले दर्ज किए हैं. उनका कहना है कि बाघ के संरक्षण की आड़ में आदिवासियों की आजीविका और पहचान ही दांव पर है.

भूमि अधिकारों के लिए इन आदिवासियों का संघर्ष नया नहीं है. 1970 के दशक से ही नागरहोल और बांदीपुर जैसे टाइगर रिज़र्व्स में से इन आदिवासियों को बेघर किया गया है. उनमें से कई लोग आज भी इस विरोध में शामिल हैं.

फ़िलहाल 800 से ज़्यादा लोगों ने जंगल में लौटने का दावा पेश किया है. बेघर हुए कई जेनु कुरुबा आदिवासियों में से कई दैनिक मज़दूरी और बंधुआ मज़दूरी करने को मजबूर हुए हैं.

बाघ संरक्षण और आदिवासियों के अधिकारों के बीच संघर्ष लंबा और पुराना है. देशभर में कई आदिवासी समुदायों को अलग-अलग टाइगर रिज़र्व्स से बेदख़ल होना पड़ा है.

जैसा कि एक जेनु कुरुबा आदिवासी कहते हैं, यह बेदखली न सिर्फ़ इन आदिवासियों के लिए विनाशकारी है, बल्कि यह भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के ख़िलाफ़ भी है.

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