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जेनु कुरूबा कर्नाटक विधान सभा चुनाव में इस बार भी वोट डालेंगे, लेकिन उम्मीदवार कौन है?

कर्नाटक विधान सभा चुनाव में नागरहोल नेशनल पार्क में रहने वाले आदिवासी समुदाय जेनु कुरूबा के लोग भी वोट डालने को तैयार हैं. राज्य में होने वाले हर विधान सभा और लोक सभा चुनाव में इस समुदाय के लोग वोट डालते हैं.

लेकिन ये आदिवासी जिस उम्मीदवार को वोट डालते हैं, आज तक उनमें से किसी भी उम्मीदवार का चेहरा उन्होंने नहीं देखा है. यहां के लोग कहते हैं कि वो अपना फ़र्ज निभाते हैं और वोट डालने जाते हैं. लेकिन किसी भी राजनीतिक दल के उम्मीदवार उनसे मिलने नहीं आते हैं.

अब यह सवाल ज़रूर है कि फिर वो कैसे तय करते हैं कि किस उम्मीदवार या पार्टी को वोट दिया जाए. इस बारे में जेनु कुरूबा आदिवासियों की एक बस्ती में बैठे लोगों से जब यह सवाल पूछा गया तो वे हंसते हुए कहते हैं, “अलग अलग राजनीतिक दल के कार्यकर्ता यहां आते हैं, जिसकी बातें अच्छी लगती हैं या फिर गांव का मुखिया जिस उम्मीदवार को वोट डालने को कहता है तो बस सब परिवार उस उम्मीदवार को वोट दे देते हैं.”

यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि उनके लिए पार्टी, प्रशासन या सरकार सब कुछ वन विभाग (forest department) ही है. उनका रोज़ का वास्ता वन विभाग के अधिकारियों से ही होता है. क्योंकि उनकी बस्तियां घने जंगल में हैं जिस पर वन विभाग का ही नियंत्रण है. 

कर्नाटक के कोडागु और मैसूर ज़िले के हनसुर में फैले नागरहोल नेशनल पार्क में कम से कम 60 बस्तियां हैं. इन बस्तियों में से ज़्यादातर में जेनु कुरूबा, कादु कुरूबा या फिर येड़वा समुदाय के लोग रहते हैं. 

इन्हीं बस्तियों में से एक बस्ती में एक घर के बाहर बैठी महिलाओं से जब पूछा गया कि वो इस चुनाव में किसे वोट देंगी तो उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं आता है. जब उनसे बार-बार यह सवाल पूछा जाता है तो वे बताती हैं कि समाज के वरिष्ठ जन जिस उम्मीदवार को वोट डालने को कहेंगे, वे उन्हें ही वोट देंगी.

वो बताती हैं कि जब भी चुनाव होता है तो समाज के प्रभावशाली लोग उन्हें बताते हैं कि किसे वोट देना है. वही लोग उन्हें वोट डालने के लिए वोटिंग बूथ तक ले जाते हैं. 

कर्नाटक में जेनु कुरूबा समुदाय के लोग मैसूर, कोडागु, चामराज नगर और हासन ज़िले के जंगल में रहते हैं. इस समुदाय के लोग जंगल के बारे में अपने ज्ञान ख़ासतौर से औषधिय पेड़ पौधों की जानकारी के लिए जाने जाते हैं. 

जेनु कुरूबा समुदाय के जीविका के परंपरागत साधनों में जड़ी बूटी और शहद जमा करना रहा है. लेकिन जिन जंगलों में वो रहते हैं उन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ने और बाहरी लोगों के जंगल में घुसने के बाद जीविका के उनके परंपरागत साधन सीमित हुए हैं. 

देश के कई अन्य आदिवासी समुदायों की तरह ही जेनु कुरूबा समुदाय पर भी जंगल छोड़ने का दबाव लगातार रहा है. यह समुदाय अलग-अलग कारणों से राजनीतिक- सामाजिक और आर्थिक तौर पर लगातार कमज़ोर हुआ है. 

इस आदिवासी समुदायो को मनरेगा जैसे कुछ कानूनों ने कुछ दिन काम उपलब्ध करनाने का काम ज़रूर किया है. लेकिन मोटेतौर पर यह समुदाय ग़रीबी में ही जीता है.

कर्नाटक में इस आदिवासी समुदाय की जनसंख्या करीब 37000 बताई जाती है. ज़ाहिर है कि यह संख्या इतनी नहीं है जो राज्य की राजनीति में अलग से एक दबाव समूह बन सके.

राज्य के सभी चुनावों में ये आदिवासी हिस्सा लें, इसके लिए चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन जागरूकता अभियान चलाता है. लेकिन जो लोग इनके वोट से चुने जाते हैं उनकी इस समुदाय के सामने पेश चुनौतियों को सुलझाने की जवाबदेही भी हो, यह कोई नहीं करता है. 

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