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शिबू सोरेन को ‘भारत रत्न’ देने का प्रस्ताव झारखंड विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित

झारखंड विधानसभा में दिग्गज आदिवासी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को भारत रत्न देने का प्रस्ताव मानसून सत्र के आखिरी दिन गुरुवार (28 अगस्त, 2025) को सर्वसम्मति से पारित हो गया.

झारखंड के परिवहन मंत्री दीपक बिरुआ ने सदन में शिबू सोरेन को भारत रत्न देने का प्रस्ताव रखा.

प्रस्ताव पेश करते हुए दीपक बिरुआ ने कहा कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने अपना पूरा जीवन आदिवासियों, किसानों, मजदूरों और शोषितों के अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने झारखंड जैसे अलग राज्य के निर्माण के लिए अथक संघर्ष किया.

उन्होंने आगे कहा, “सत्तारूढ़ और विपक्षी सदस्यों की भावना के अनुरूप, मैं एक प्रस्ताव पेश करता हूं कि यह सदन भारत सरकार से दिशोम गुरु शिबू सोरेन को भारत रत्न से सम्मानित करने का अनुरोध करे.”

बिरुआ ने सोरेन को केवल एक राजनीतिक नेता नहीं बल्कि एक दूरदर्शी व्यक्ति बताया, जिनका योगदान सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना में ऐतिहासिक महत्व रखता है.

उन्होंने कहा कि ऐसे महान नेता को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

चर्चा के दौरान, सभी दलों के विधायकों ने सोरेन की विरासत को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और उन्हें झारखंड आंदोलन का सूत्रधार बताया.

सदस्यों ने आदिवासियों, किसानों और हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों के लिए उनके अथक संघर्ष को याद किया और कहा कि उनके नेतृत्व ने 2000 में झारखंड के निर्माण की नींव रखी.

BJP ने किया प्रस्ताव का समर्थन

यह प्रस्ताव सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की सहमति से पारित हुआ, जो सोरेन के प्रति सम्मान को दर्शाता है.

प्रस्ताव का समर्थन करते हुए विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस फैसले का पूरा समर्थन करती है. हम इस संकल्प के साथ हैं.

इसके साथ ही उन्होंने मांग रखी कि झारखंड आंदोलन के प्रणेता और झारखंड आंदोलन की नींव रखने वाले मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा और विनोद बिहारी महतो का नाम जरूर जोड़े.

उन्होंने कहा कि ये दोनों भी झारखंड आंदोलन के प्रमुख अग्रदूत थे.

मरांडी ने कहा, “क्योंकि हम एक ऐतिहासिक निर्णय ले रहे हैं इसलिए मैं प्रस्ताव में झारखंड आंदोलन के अग्रदूतों, मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा और बिनोद बिहारी महतो का नाम जोड़ना चाहूंगा.”

वहीं संसदीय कार्य मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने सुझाव दिया कि प्रस्ताव में यह बात जोड़ी जाए कि भारत की आज़ादी में आदिवासी समाज का बहुमूल्य योगदान है. लेकिन आदिवासी समाज के किसी आंदोलनकारी, राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी को आज तक भारत रत्न नहीं मिला. ऐसे में शिबू सोरेन को भारत रत्न दिया जाए.

विधायकों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शिबू सोरेन का जीवन झारखंड के लोगों की गरिमा, गौरव और स्वाभिमान से गहराई से जुड़ा था.

सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित होने के बाद विधानसभा “भारत रत्न शिबू सोरेन” के नारों से गूंज उठी, जो इस मांग के इर्द-गिर्द गहरी भावनात्मक और राजनीतिक सहमति को दर्शाता है.

दिशोम गुरु शिबू सोरेन

झामुमो के संस्थापक रहे शिबू सोरेन का 4 अगस्त को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. उनके निधन से एक ऐसे राजनीतिक युग का अंत हो गया, जिसने आदिवासी आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दी.

सोरेन ने झारखंड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ी है जिसने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम दिया.

11 जनवरी, 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गाँव (तब बिहार में, अब झारखंड में) में जन्मे सोरेन लोकप्रिय रूप से ‘दिशोम गुरु’ (भूमि के नेता) और झामुमो के पितामह के रूप में जाने जाते थे. इन्हें देश के आदिवासी और क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य में सबसे स्थायी राजनीतिक हस्तियों में से एक माना जाता था.

उनका राजनीतिक जीवन आदिवासियों के अधिकारों की निरंतर वकालत के लिए समर्पित रहा. अपने राजनीतिक जीवन में सोरेन ने बंगाली मार्क्सवादी नेता ए.के. रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की.

वह दुमका से कई बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और जून 2020 में राज्यसभा के सदस्य बने. यूपीए सरकार में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में रहे और उन्होंने 2004 से 2006 के बीच कई बार केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में भी काम किया.

उनके निधन के बाद से ही उन्हें भारत रत्न देने की मांग जोर पकड़ने लगी थी.ऐसे में गुरुवार को उनको भारत रत्न देने की मांग का प्रस्ताव विधानसभा में आया और सर्वसम्मति से उस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया.

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