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संगीता कुमारी का आदिवासी गांव से लेकर भारतीय हॉकी टीम तक का सफर

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हाल ही में समाप्त हुई तीन मैचों की टेस्ट सीरीज़ में दो गोल के साथ टॉप स्कोरर रहीं संगीता कुमारी (Sangita Kumari) की खूब चर्चा हुई. पहले दो मैचों में एक-एक गोल करने वाली संगीता अपनी प्रतिभा के दम पर भारतीय महिला टीम तक पहुंची हैं. झारखंड के सिमडेगा जिले के करंगागुरी-नवाटोली के आदिवासी गांव से यहां तक पहुंचने का उनका सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा है.

21 साल की संगीता फॉरवर्ड खेलती हैं. फरवरी 2022 में स्पेन के खिलाफ प्रो लीग मैच में संगीता ने अपने नाम पहला अंतरराष्ट्रीय गोल किया था. तब से अब तक 23 अंतरराष्ट्रीय मैचों में संगीता नौ गोल कर चुकी हैं. इसी प्रदर्शन के कारण भारतीय टीम में उनकी जगह पक्की हो गई है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, संगीता ने बर्मिंघम में 2022 के कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीत कर कमाल कर दिया था. साथ ही भारत के 16 साल के सूखे को खत्म करने में मदद की थी. इसके अलावा पिछले साल दिसंबर में खेले गए इनॉगरल नेशंस कप में संगीता तीन गोल के साथ टॉप स्कोरर रही थीं और उन्होंने इस कप को जीतने में भारतीय टीम की बड़ी मदद की थी.

कई सीरीज में टॉप स्कोरर रह चुकी संगीता ने अपने संघर्ष भरे बचपन बारे में हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि उन्होंने अपनी उम्र बढ़ने के साथ-साथ अपने घर की बेहद कमजोर आर्थिक स्थिति को भी बड़े करीब से देखा.

संगीता के पिता एक किसान और मां एक गृहिणी हैं. किसान पिता पांच बेटियों और एक बेटे समेत परिवार का पालन पोषण करते आ रहे हैं. संगीता मिट्टी के घर में पली-बढ़ी हैं. जहां न तो बिजली थी और न ही पीने का साफ पानी. उनके पास पैसे भी नहीं थे और न ही अच्छे या नए कपड़े और जूते थे. उनके पास कुछ था तो वो थी हॉकी.

संगीता का कहना है कि उन्होंने बांस की बनी लकड़ियों से नंगे पांव हॉकी खेलना शुरू किया था. संगीता ने जब पहली बार भारतीय टीम को टीवी पर हॉकी खेलते देखा उसी वक्त ठान लिया कि वह हॉकी प्लेयर बनेंगी.

संगीता ने बताया, “एक दिन उनके स्कूल के प्रींसिपल ने सभी के लिए टीवी पर एक अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैच देखने का आयोजन किया. जिसके बाद मैंने कुछ स्किल्स और मूव्स सीखना शुरू कर दिया. मैच देखने के बाद मुझे लगा कि मैं भी एक दिन भारतीय टीम के लिए खेल सकती हूं.”

संगीता को उनकी पहली हॉकी स्टिक एक स्कूल प्रतियोगिता के दौरान बेस्ट प्लेयर का खिताब जीतने पर मिली थी. संगीता ने अपनी स्किल्स से अपने स्काउट्स को प्रभावित किया. जिसके बाद उन्हें 2012 में एस्ट्रो टर्फ हॉकी स्टेडियम, सिमडेगा में डे बोर्डिंग सेंटर के लिए कोच प्रतिमा बरवा के नेतृत्व में चुना गया. प्रतिमा जूनियर राज्य टीम को प्रशिक्षित करती हैं और उन्होंने सलीमा टेटे और ब्यूटी डंगडुंग जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को तराशा है.

इस सेंटर में संगीता ने 5 साल बिताए और यहीं पर अपने कौशल को सीखा और बढ़ाया. इसके बाद संगीत ने सब-जूनियर नेशनल्स में झारखंड का प्रतिनिधित्व करना शुरू कर दिया और उसके बाद जूनियर नेशनल्स भी खेला. इस दौरान झारखंड को संगीता ने कई मेडल दिलाए.

अक्टूबर 2016 में संगीता ने वेलेंसिया में पांच देशों के इंविटेशनल टूर्नामेंट में जूनियर इंडियन में डेब्यू किया. साथ ही अपने दूसरे गेम में स्पेन के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय गोल किया.

संगीता तब सुर्खियों में आईं जब 2016 अंडर-18 एशिया कप में उन्होंने आठ गोल करते हुए भारत को ब्रॉन्ज मेडल जीतने में मदद की. संगीता 2018 एशियन यूथ ओलंपिक गेम्स क्वालीफायर में भारतीय टीम का भी हिस्सा रहीं.

लेकिन जैसे ही संगीता ने ऊंचाइयों को छूना शुरू किया एक बड़ी चोट ने उसे एक साल के लिए ब्रेक दे दिया. जिसके बाद उसे दाहिने पैर पर एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट (ACL) सर्जरी करानी पड़ी.

रिहैबिलिटेशन से गुजरने के बाद संगीता ने 2019 में वापसी की और कई डोमेस्टिक कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया. खासकर के झारखंड को 2019 में जूनियर नेशनल जीतने में मदद की.

संगीता की गोल करने की क्षमता, 3डी स्किल, चकमा देने की प्रतिभा ने उन्हें विश्व कप के लिए जूनियर इंडिया टीम में वापसी करने में मदद की जो दिसंबर 2021 के लिए निर्धारित किया गया था लेकिन कोविड-19 के कारण अप्रैल 2022 तक के लिए स्थगित कर दिया गया.

इसके बाद साल 2022 में संगीता को सीनियर टीम के लिए चुना गया. हॉकी के दम पर ही संगीता ने अगस्त 2021 में रेलवे स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड द्वारा नियुक्त किए जाने पर अपनी पहली नौकरी पाई.

संगीता का हॉकी खेलना बहुत लोगों को खटका था. घर में एक तरफ जहां उनके पिता हमेशा उनका सपोर्ट करते रहे, वहीं दूसरी तरफ उनकी मां को कभी भी ये पसंद नहीं था. वो हमेशा संगीता से घर के काम सीखने के लिए कहती थीं.

संगीता बताती हैं, “अब मेरी माँ कहती है कि यह उनकी गलती थी कि उन्होंने मुझे खेलने से मना किया. हॉकी की वजह से ही मुझे नौकरी मिली.”

नौकरी मिलने पर संगीता इतनी खुश हुई कि उसने न सिर्फ अपने परिवार के साथ बल्कि पूरे गांव के साथ अपनी खुशी साझा की. संगीता ने अपने गांव में बुजुर्गों के लिए धोती खरीदी और बच्चों को हॉकी स्टिक और बॉल गिफ्ट की.

संगीता ने कहा, “मैं अपने गांव के लिए कुछ करना चाहती थी. मुझे याद है कि जब मैंने शुरुआत की थी तो मुझे किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था. कम से कम जो लोग अभी खेल रहे हैं उनके पास बेसिक्स होने चाहिए जो मुझे नहीं मिले. मैं चाहती हूं कि वे वैसे ही उठें जैसे मैंने किया. मेरे गांव के बहुत से बच्चे मुझे देखकर हॉकी खेलने लगे हैं.”

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