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झारखंड: आदिवासी आदमी की अवैध हिरासत से कोर्ट नाराज़, पुलिस को उसे मुआवज़ा देने का आदेश

झारखंड हाई कोर्ट ने जामताड़ा पुलिस की ख़राब जांच औऱ उसकी वजह से एक आदिवासी आदमी को हुई पीड़ा का कड़ा संज्ञान लेते हुए मुआवज़े का आदेश दिया है. जामताड़ा पुलिस द्वारा एक आदिवासी आदमी, शनीचर कोल, को अवैध तरीके से हिरासत में लिया गया था. कोर्ट ने जामताड़ा पुलिस से कोल को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.

कोल की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस आनंद सेन ने नौ पन्नों के अपने फैसले में जांच तंत्र और निचली अदालत के नज़रिए पर नाराजगी और निराशा जताई.

जस्टिस सेन ने कहा, “यह उन मामलों में से एक है जिसने इस अदालत की अंतरात्मा को हिला कर रख दिया है, और आरोप पत्र दायर करने वाली जांच एजेंसी में विश्वास को हिला दिया है.”

उन्होंने कहा कि सिर्फ़ “मानवता की पुकार का जवाब देने के लिए, एक निर्दोष आदिवासी को पीड़ित किया गया है.”

जामताड़ा के अंतर्गत आने वाले करमाटांड थाने में दर्ज मामले में कोल को आरोपी बनाया गया था. एक महादेव मंडल ने यह कहते हुए मुकदमा दर्ज कराया था कि उनकी बेटी आशा देवी की हत्या उनके पति गोविंद मंडल, साले नरेश मंडल और पति के पड़ोसी शनीचर कोल ने की थी. एफ़आईआर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत दर्ज की गई थी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने आशा देवी का जब शव बरामद किया तो उसकी गर्दन पर गला घोंटने का निशान था. पुलिस ने कोल को शव के पास बैठा पाया. लेकिन तब तक गोविंद और नरेश वहां से फ़रार हो गए थे.

जांच से पता चला कि 30 जून, 2021 को गोविंद के साथ एक लड़ाई के बाद आशा देवी ने फ़ांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. गोविंद ने कोल से आशा देवी के शरीर को नीचे उतारने में मदद करने के लिए कहा, और कोल से गुज़ारिश की कि वह आशा देवी के मृत शरीर के पास बैठ जाए. उसे वहां बिठाकर गोविंद वहां से बाग गया.

आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत चार्जशीट दाखिल की गई और कोल को आरोपी बनाया गया. उसे पुलिस ने गिरफ्तार किया, और 1 जुलाई 2021 से वह उनकी हिरासत में है. वो भी तब जब पुलिस के पास उसके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है. डीजीपी नीरज सिन्हा ने कोर्ट के सामने माना कि पुलिस के पास कोल के खिलाफ शायद ही कोई सबूत है.

अदालत ने कोल की तत्काल रिहाई का आदेश देते हुए जामताड़ा के एसपी को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है कि उन्हें चार सप्ताह के अंदर 50,000 रुपये के मुआवज़े का भुगतान किया जाए और इसकी अनुपालन रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश की जाए.

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