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इलाज के अभाव में जिनकी मौत हो गई, उस आदिवासी स्कॉलर के लिए पद्म श्री

जो आदिवासी प्रोफेसर पिछले साल कोविड के इलाज के लिए रांची के अस्पतालों में जगह ढूंढते-ढूंढते चल बसा, उसे केंद्र सरकार ने इस साल पद्म श्री से सम्मानित किया है.

रांची विश्वविद्यालय के आदिवासी और क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व प्रमुख गिरिधारी राम गंझू के परिवार के लिए इन दो विरोधाभासी अनुभवों को स्वीकार करना मुश्किल है.

“हम उन्हें पिछले साल 15 अप्रैल की सुबह से रांची के नौ निजी अस्पतालों में ले गए, लेकिन सभी ने बिस्तर देने से इनकार कर दिया. दाखिले के लिए उन्हें एक नकारात्मक कोविड-19 रिपोर्ट चाहिए थी, वो भी RT-PCR,” उनके बेटे ज्ञानोत्तम ने बताया. ज्ञानोत्तम कहते हैं कि इसी वजह से कोई एम्बुलेंस भी नहीं मिली.

द टेलीग्राफ से बात करते हुए ज्ञानोत्तम आगे कहते हैं कि उस समय आरटी-पीसीआर परीक्षण आसानी से करवाना नामुमकिन था, क्योंकि उन दिनों कम से कम 3

“हालांकि बहुत भीड़ थी, हमने उन्हें सरकारी राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में ले जाने के बारे में भी सोचा, जब उन नौ अस्पतालों में से किसी में भी बिस्तर नहीं मिला. लेकिन पापा ने हमें कहा कि हम उन्हें घर ले जाएं,” उन्होंने बताया.

गंझू की जांच करने वाले उनके एक डॉक्टर दोस्त ने उन्हें एम्बुलेंस में रिम्स ले जाने की सलाह दी ताकि उन्हें आपातकालीन देखभाल की जरूरत वाले मरीज के रूप में भर्ती किया जा सके. फिर उन्होंने एक लोकल लैब से जल्दी जल्दी एंटीजन टेस्ट करवाया.

टेस्ट नेगेटिव था, तो उन्हें रिम्स ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने गंझू को मृत घोषित कर दिया.

गंझू एक प्रशंसित लेखक और नागपुरी भाषा के विशेषज्ञ थे और उन्होंने मरंग गोमके जयपाल सिंह पर एक नाटक समेत लगभग 25 किताबें लिखी थीं.

उन्हें रांची यूनिवर्सिटी द्वारा यूजीसी परियोजना के एक हिस्से के रूप में स्थानीय कला और संस्कृति पर लगभग 40 ऑडियो-विज़ुअल एपिसोड बनाने का काम सौंपा गया था, जिसे उन्होंने पूरा किया.

उनके योगदान को पहचानते हुए केंद्र सरकार ने हाल ही में गंझू को मरणोपरांत पद्म श्री से सम्मानित किया है.

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