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आंध्र प्रदेश में आदिवासियों के रोज़गार में गिरावट, महामारी में भी नहीं मिल पाया 100 दिन काम

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत आंध्र प्रदेश में महिलाओं, आदिवासियों, और पिछड़े वर्ग को मिलने वाले रोज़गार में पिछले तीन वर्षों में गिरावट आई है. लेकिन तेलंगाना में स्थिति बेहतर है. लिबटेक इडिया द्वारा अप्रैल से दिसंबर 2020 के बीच योजना के कार्यान्वयन पर बनाई गई एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.

आंध्र प्रदेश में हालांकि रोज़गार दिए जाने के कुल दिनों की औसत संख्या आमतौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं की ज़्यादा रही, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं की रोज़गार में हिस्सेदारी 2019 के मुक़ाबले 2020 में लगभग 3.7% कम हुई है. 2019 में यह 60.05% थी, और 2020 में यह गिरकर 56.38% हो गई.

राज्य में मनरेगा के तहत अनुसूचित जाति के कामगारों का हिस्सा 2019-20 से 2020-21 तक लगभग 2% बढ़ा, लेकिन अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी में थोड़ी कमी आई.

2019 के मुक़ाबले 2020 में, मनरेगा के तहत अनुसूचित जनजाति के मज़दूरों के प्रतिशत में कुछ कमी आई है. जहां 2019 में यह 11.37% था, 2020 में यह 11.08% हो गया.

वहीं, अनुसूचित जाति की बात करें तो 2019 की तुलना में, एससी श्रमिकों को प्रदान किए गए रोज़गार का हिस्सा 2020 में लगभग 2% (21.14% से 23.10%) बढ़ गया.

लिबटेक इंडिया की रिपोर्ट

लेकिन कुल मिलाकर आंध्र प्रदेश में महामारी के दौरान योजना के तहत दिए गए रोज़गार में वृद्धि हुई है. 2020 में मनरेगा के तहत कुल 6,28,349 नए मज़दूरों को जोड़ा गया. हालांकि इस बढ़ोतरी के बावजूद, सिर्फ़ 8.62% परिवार ही सक्रिय रूप से योजना से जुड़े, और 100 दिनों के काम को पूरा किया.

उधर तेलंगाना में जॉब कार्ड और रोज़ के काम में बढ़ोतरी हुई है. राज्य में आमतौर पर महिलाओं की भागीदारी राष्ट्रीय औसत से ऊपर रही है, लेकिन 2020 में इसमें गिरावट देखी गई. 2020 में महिलाओं की हिस्सेदारी में 5.4% की कमी आई है.

अनुसूचित जाति और जनजाति की हिस्सेदारी तेलंगाना में राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा है, और पिछले वर्ष भी दोनों में वृद्धि हुई है. राज्य में आदिवासियों की मनरेगा में हिस्सेदारी 2020 में लगभग 13% बढ़ी है, जबकि एससी समुदाय के लिए यह बढ़ोतरी 12.95% की रही.

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