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असम में 20 आदिवासी महिलाओं के रेप मामलों में कब होगा इंसाफ़

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असम में आदिवासियों को शोषण और उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाए क़ानून को लागू नहीं किया जा रहा है. ऑल इंडिया ट्राइबल स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन ने यह आरोप लगाया है. 

इस संगठन का कहना है कि असम में आदिवासियों के साथ हुए जघन्य अपराधों में भी इस क़ानून का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इसकी वजह से अपराधी छूट जाते हैं.

इस आदिवासी संगठन ने कहा है कि आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार और उनकी हत्या जैसे गंभीर अपराध में भी पीड़ित को न्याय नहीं मिलता है. 

इस तरह के मामलों का ज़िक्र करते हुए संगठन ने दावा किया है कि 2012 से लेकर अभी तक यानि पिछले 10 साल में कम से कम 20 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें आदिवासी महिलाओं का बलात्कार किया गया है.

इस तरह के मामलों में कई मामले ऐसे हैं जिनमें बलात्कार के बाद महिला की हत्या भी कर दी गई. लेकिन इन मामलों में लिप्त अपराधी कुछ ही दिनों या महीनों में जेल से बाहर आ गए. 

इसकी मुख्य वजह है कि आदिवासियों को उत्पीड़न और शोषण से बचाने के बनाए गए एसी/एसटी प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसीटिज़ एक्ट 1995 को लागू ही नहीं किया गया.

ऑल इंडिया ट्राइबल स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन का कहना है कि इन मामलों में जाँच अधिकारी अक्सर पक्षपाती रूख रखते हैं. इसलिए जाँच ठीक से नहीं की जाती है.

इस संगठन ने राज्य के डीजीपी भास्कर ज्योति महंत को एक ज्ञापन दिया है. 

इस ज्ञापन में संगठन ने पिछले 10 साल में आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार और उनकी हत्या के मामलों का ब्यौरा दिया है.

संगठन ने डीजीपी को बताया है कि इन महिलाओं के मामलों में जाँच के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक में गड़बड़ी देखी गई है. 

इस आदिवासी संगठन का कहना है कि आदिवासी आबादी में शिक्षा की कमी है. इसके अलावा ज़्यादातर आदिवासी परिवार ग़रीबी में जीने को मजबूर हैं.

इसलिए जब उनके ख़िलाफ़ अपराध होता है तो पुलिस उन अपराधों को गंभीरता से नहीं लेती है.

अशिक्षा और अपने अधिकारों के प्रति उदासीनता की वजह से आदिवासी आबादी अपने हक़ों को नहीं समझता है. लेकिन सरकार की तरफ़ से भी आदिवासियों को क़ानूनी सहायता नहीं दी जाती है. 

इसलिए उन्हें न्याय नहीं मिल पाता है. 

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