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कर्नाटक की घुमंतु जनजातियों का पहला सर्वेक्षण, योजनाओं के विस्तार पर भी चर्चा

कर्नाटक के खानाबदोश या घुमंतु (nomadic) आदिवासी समुदायों तक सरकारी योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कर्नाटक घुमंतू और अर्ध घुमंतू विकास निगम ने पहली बार इन समुदायों का सर्वेक्षण किया है.

निगम के अध्यक्ष के रवींद्र शेट्टी ने सर्वेक्षण और कल्याण योजनाओं की जानकारी मीडिया के साथ साझा की. शेट्टी शुक्रवार को जलादर्शिनी में टी नरसीपुरा निर्वाचन क्षेत्र के कुप्प्या गांव और हुनसुर विधानसभा क्षेत्र के शानुभोगनहल्ली गांव में रहने वाली खानाबदोश जनजातियों से मिलने पहुंचे थे.

शेट्टी ने बताया कि राज्य में बैरागी, भराडी, बाजीगर, धोंबरी और गोल्ला सहित 47 खानाबदोश आदिवासी समुदाय हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में इन खानाबदोश आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 29 लाख है. हालांकि समुदाय के नेता दावा करते हैं कि उनकी आबादी लगभग 75 लाख है. इनमें अकेले गोल्ला आदिवासियों की संख्या 35 लाख है. मैसूर जिले के आठ विधानसभा क्षेत्रों में इनकी जनसंख्या 9,645 है.

चूंकि इन समुदायों की के बारे में उचित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए शेट्टी ने सभी जिलों के उपायुक्तों को अपने संबंधित जिलों में पीडीओ और समुदाय के नेताओं के माध्यम से खानाबदोश जनजातियों का सर्वेक्षण करने, और छह महीने के अंदर रिपोर्ट सौंपने करने को कहा है.

शेट्टी ने यह भी कहा कि पिछले साल निगम को सरकार से 12.29 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें से 2.2 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं किया गया है. सरकार ने पहले भी 6 करोड़ रुपये और हाल ही में 10 करोड़ रुपये जारी किए थे.

भारत की घुमंतू जनजातियां

घुमंतू जनजातियों और डीनोटिफ़ाइड जनजातियों के भारत में लगभग छह करोड़ लोग शामिल हैं, जिनमें से लगभग 50 लाख अकेले महाराष्ट्र में रहते हैं. देश में कुल 315 घुमंतू जनजातियाँ और 198 डीनोटिफ़ाइड जनजातियाँ हैं.

देश में कुल क़रीब 150 डीनोटिफ़ाइड आदिवासी समुदाय हैं, जबकि खानाबदोश जनजातियों की संख्या क़रीब 500 है.

कर्नाटक में 46 ऐसे समुदाय हैं. राज्य सरकार इनके कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाती है, जिनमें इनके स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं. इसके अलावा इनके लिए कई जागरुकता कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं.

खानाबदोश चरवाहा जनजातियों के एक बड़े वर्ग को डीनोटिफ़ाइड जाति के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्हें ब्रिटिश शासन के तहत आपराधिक जनजाति अधिनियम 1871 के तहत इस तरह वर्गीकृत किया गया था.

देश की आज़ादी के बाद, इस अधिनियम को 1952 में भारत सरकार द्वारा रद्द कर दिया गया था. महाराष्ट्र में इन लोगों को ऐतिहासिक परिस्थितियों की वजह से अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन अनुसूचित जाति या “घुमंतू जनजाति” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

“डीनोटिफ़इड”, “घुमंतू” या “अर्ध-घुमंतू” के रूप में जानी जाने वाली यह जनजातियां देश में आरक्षण के पात्र हैं.

भारत सरकार ने ऐसी जनजातियों के विकास संबंधी पहलुओं का अध्ययन करने के लिए 2005 में गैर-अधिसूचित, खानाबदोश और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की थी.

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