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कर्नाटक की पहली ट्राइबल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स रिपोर्ट तैयार, जानिए चौंकाने वाले फैक्ट्स


कर्नाटक (Karnataka) में मैसूर विश्वविद्यालय (Mysore university) ने आदिवासी सुमदाय के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (human development index for tribal community) यानि मानव विकास सूचकांक पर एक रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट को कर्नाटक स्टेट ट्राइबल ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स का नाम दिया गया है.

कनार्टक ऐसा दूसरा राज्य है, जिसने कमजोर आदिवासी समूहों पर ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स रिपोर्ट तैयार की है. इससे पहले करीब 14 साल पहले केरल ने भी ऐसी ही एक रिपोर्ट तैयार की थी.

अभी तक देश के 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से दो ही ऐसे राज्य है जिन्होंने कमजोर आदिवासी समूहों पर ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स रिपोर्ट तैयार की है.

इस रिपोर्ट के जरिए कई ऐसे समुदायों और जातियों के बारे में पता चला है जो लंबे वक्त से सरकार से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं.

इसके अलावा इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए हैं. जिसमें से सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि राज्य में 18 सूक्ष्म आदिवासी ऐसे है, जिन्हें 2011 की जनगणना में नहीं गिना गया है.

यूओएम के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल एक्सक्लूजन एंड इनक्लूसिव पॉलिसी (CSSEIP) के निदेशक डीसी नंजुंदा और मांड्या पीजी स्टडी सेंटर के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर जीएस प्रेमकुमार के शोधकर्ताओं की टीम ने तीन साल पहले इस परियोजना को शुरू किया था और अब यह काम पूरा कर लिया है.

आदिवासियों के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए शोधकर्ताओं ने राज्य की विभिन्न आदिवासी बस्तियों में फैले 51 से अधिक कमजोर समूहों के आदिवासियों के घरों पर जाकर डेटा एकत्र किया है. उन्होंने 5,000 से अधिक आदिवासी समुदाय के सदस्यों से डेटा एकत्र किया है.

इस रिपोर्ट में आदिवासियों के स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक, रोज़गार, आय, मूलभूत सुविधाएं, माता और शिशु की मौत दर, भूमि अतिक्रमण, सामुदायिक भागीदारी, लिंग संवेदनशीलता, पेयजल की सुविधा इत्यादि संबंधित क्षेत्रों में रिसर्च की गई थी.

इसके अलावा परियोजना शोधकर्ता प्रेमकुमार ने बताया की डेटा इकट्ठा करने के लिए प्राथमिक और माध्यमिक दोनों सर्वेक्षणों का इस्तेमाल किया गया है.

सर्वेक्षण के दौरान सोलिगा, बेट्टा कुरुबा, जेनु कुरुबा, कोरगा, पनिया जेनु कुरुबा और इरुलिगा आदिवासियों की बस्तियों का दौरा किया गया था.

रिपोर्ट के जरिए ये पता चला की जंगलों के भीतर रहने वाले आदिवासी और जंगलों के बाहर रहने वाले आदिवासियों के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में काफी फर्क है.

इसके अलावा उनमें से कई के पास राशन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र नहीं थे और उन्हें पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रतिनिधित्व नहीं मिले, उन्हें कई सरकारी लाभ का अब तक कोई फायदा नहीं मिला है और ना ही उनमें से किसी के पास सरकारी नौकरी है.

स्वास्थ्य क्षेत्र में जांच करने पर पता चला है कि इन आदिवासी समुदायों के बीच कुपोषण, कम वजन, एनीमिया जैसी बीमारियां मौजूद है. वहीं बच्चों का स्कूल में कम मौजूद होना भी आदिवासी समुदायों में एक बड़ी समस्या है.

रिपोर्ट में समस्याओं के अलावा आदिवासी समूहों के सशक्तिकरण के लिए लागू की गई सरकारी योजनाओं की सफलता और विफलताओं पर भी जोर डाला गया है और सरकार को इन समस्याओं से निपटने के लिए उपाय भी इसमें शामिल किए गए हैं.

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