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न स्मार्टफ़ोन है, न डेटा, कैसे देखें पनिया आदिवासी अपनी भाषा में बनी पहली फिल्म?

सोचिए अगर आप एक बेहद पिछड़े आदिवासी समुदाय से आते हैं, दुर्गम इलाक़ों में रहते हैं, और बाहरी दुनिया से आपका कम ही लेना-देना है. फिर सोचिए कि आपकी आदिम भाषा में एक फ़िल्म बनती है, और उसे राज्य के फ़िल्म फ़ेस्टिवल में पुरस्कार भी मिलता है. फ़िल्म फिर OTT प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ होती है, और हज़ारों लोग उसे देखते हैं. लेकिन आप, जिन्होंने इस फ़िल्म में एक्टिंग की है, आपकी भाषा में यह फ़िल्म बनी है, आप उसे देख नहीं पाते क्योंकि आपके पास स्मार्टफ़ोन नहीं है, और अगर है तो मज़बूत इंटरनेट कनेक्शन नहीं.

कुछ ऐसा ही हुआ है केरल के पनिया आदिवासी समुदाय के साथ.

इस समुदाय द्वारा बोली जाने वाली पनिया भाषा में एक फिल्म ‘केंजिरा’ को रिलीज़ हुए एक महीने से ज़्यादा हो गया है, लेकिन केरल के वायनाड और कर्नाटक के पड़ोसी इलाक़ों में रहने वाले इस आदिवासी समुदाय के लोग इसे अभी तक देख नहीं पाए हैं.

मनोज काना द्वारा निर्देशित ‘केंजिरा’ पनिया भाषा में बनी पहली फिल्म है, और इसमें ज़्यादातर किरदार पनिया लोगों ने ही निभाए हैं. 2019 में आईएफएफके (International Film Festival of Kerala) में ‘केंजिरा’ का प्रीमियर हुआ था, और उसने दूसरी सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए केरल राज्य फिल्म पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते.

काना की वाइडस्क्रीन रिलीज़ की योजना COVID-19 महामारी की वजह से फ़ेल हो गई, और अंत में उन्होंने 7 सितंबर को ओटीटी पर फिल्म रिलीज़ की.

‘केंजिरा’ आदिवासियों के अपमान और शोषण की दयनीय स्थिति को बयां करती एक फ़िल्म है. काना अब समुदाय का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए वायनाड की सुदूर पनिया कॉलोनियों में ‘केंजिरा’ की स्क्रीनिंग करने की योजना बना रहे हैं.

निर्देशक मनोज काना पनिया कलाकारों के साथ

थिएटर के प्रति उनका जुनून ही काना को दो दशक पहले वायनाड के मनंतवाडी ले गया था. जहां उन्होंने और उनकी मंडली ने आदिवासी बस्तियों में सामाजिक मुद्दों पर कई नुक्कड़ नाटक किए. इस दौरान काना ने आदिवासियों का रहन-सहन, उनके रीति-रिवाज़ और उनकी भाषाओं के बारे में सीखना शुरू किया.

काना ने वायनाड में बिताए समय में समझा कि एक ही जनजाति की भाषा एक जगह से दूसरी जगह पर अलग हो जाती है. मनंतवाडी में पनिया जो भाषा बोलते हैं, वह कूर्ग के पास के सीमावर्ती इलाकों में बोली जाने वाली पनिया भाषा से अलग है.

“मनंतवाडी की पनिया भाषा केरल में बोली जाने वाली मलयालम के काफ़ी क़रीब है, लेकिन कूर्ग के सीमावर्ती इलाकों में बोली जाने वाली पनिया कन्नड़ से मेल खाती है. स्कूल में आदिवासी छात्र उन्हीं से बात करते हैं, जो उनकी भाषा बोलते हैं. अगर मुदुवान आदिवासी समुदाय के एक छात्र को अपनी क्लास में एक ही भाषा बोलने वाला दूसरा नहीं मिलता है, तो वह स्कूल आना बंद कर सकता है. हमारा पहला अभियान छात्रों की कमी के कारण सरकार को स्कूल बंद करने की अनुमति नहीं देना था. हमने इसमें सफ़लता पाई,” काना बताते हैं.

‘केंजिरा’ के बारे में काना बताते हैं कि फिल्म में अभिनय करने वाले कई लोग उनके साथ विभिन्न नुक्कड़ नाटकों में काम कर चुके हैं. फिल्म में दादी की भूमिका निभाने वाली चोली अम्मा की उम्र 80 साल से ज्यादा है. ‘केंजिरा’ में जो चीज़ें दिखाई गई हैं, वो सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं.

फ़िल्म 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक पनिया लड़की केंजिरा (विनुषा रवि) के जीवन के माध्यम से आगे बढ़ती है. जब वह अपने परिवार को ग़रीबी से बचाने के लिए दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम पर जाती है, तो उसे अपमान और यौन शोषण सहना पड़ता है.

भले ही शोषण और विस्थापन जैसे मुद्दे आदिवासियों के लिए नए नहीं हैं, लेकिन जो बात इस फ़िल्म को अलग बनाती है, वो यह है कि यह उनकी भाषा में ही है.

अब अपने समुदाय पर अपनी भाषा में बनी फ़िल्म को देखने के लिए उतावले पनिया लोगों के लिए काना पनिया बस्तियों में विशेष स्क्रीनिंग का जल्द ही आयोजन करेंगे.

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