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सीटों की कमी के चलते वायनाड के सैकड़ों आदिवासी छात्र 10वीं के बाद छोड़ रहे पढ़ाई

पिछले दो सालों में कोरोना महामारी ने अन्य व्यवस्थाओं के साथ शिक्षा व्यवस्था को भी अस्त-व्यस्त कर दिया. इस महामारी के बाद की व्यवस्था के पतन से सबसे ज्यादा प्रभावित वायनाड के अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्र हैं. जो वैसे ही आम दिनों में भी शिक्षित होने के लिए एक कठिन लड़ाई का सामना करते हैं.

दरअसल केरल में इस साल 10वीं कक्षा पास करने वाले छात्रों के लिए सीटों की कमी ने CPI-M के नेतृत्व वाली सरकार पर भारी दबाव डाला है. विपक्ष ने इस मुद्दे पर बहिर्गमन किया और मीडिया ने इसकी आलोचना की.

छात्रों के लिए सीटों की कमी ने इस साल काफी हद तक सुर्खियां बटोरीं क्योंकि इसका असर सामान्य वर्ग के छात्रों पर भी पड़ा है. लेकिन द न्यूज मिनट द्वारा की गई स्टडी से पता चलता है कि केरल के वायनाड में आदिवासी छात्र लगभग एक दशक से इस समस्या का सामना कर रहे हैं.

पिछले आठ सालों में वायनाड में कक्षा 11 की सीटों की मांग करने वाले 4,500 से अधिक आदिवासी छात्रों को पीछे हटना पड़ा. केरल के सरकारी संस्थानों में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए 8 फीसदी सीटें आरक्षित हैं. यह एक साल में एसटी के लिए लगभग 2,000 सीटों के बराबर है.

जबकि SSLC परीक्षा पास करने वाले आदिवासी छात्रों की संख्या हर साल 6 से 7 हज़ार है इनमें से एक तिहाई छात्र वायनाड के हैं. अनुमान के मुताबिक पिछले साल वायनाड में 2,000 से अधिक आदिवासी छात्रों ने 10वीं कक्षा पास की जो एसटी कुल आबादी का लगभग आधा है.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने 2020-21 शैक्षणिक वर्ष के लिए एसटी उम्मीदवारों के लिए सिर्फ 529 सीटें आवंटित की हैं. इसका मतलब है कि हर साल सैकड़ों आदिवासी छात्र वायनाड से पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि उनके पास शिक्षा तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है और फिर ये छात्र दिहाड़ी मजदूरी की ओर रुख करते हैं.

2020 में 10वीं कक्षा पास करने वाली दिव्यमणि को जिस कठिनाई का सामना करना पड़ा वह एक उदाहरण पेश करता है. वायनाड में पुल्पल्ली के पलाकोली गांव के एक आदिवासी छात्रा दिव्यमणि को अभी तक 11वीं कक्षा में प्रवेश नहीं मिला है.

दिव्यामणि TNM को बताती हैं, “मैं एक सीट पाने और आगे पढ़ने की उम्मीद कर रही थी. अब मैं घर पर बैठकर कुछ खास नहीं कर रही हूं.”

दिव्यमणि ने इस साल भी दाखिले के लिए आवेदन किया है लेकिन अभी तक उन्हें सीट नहीं मिली है. पलाकोली बस्ती में दिव्यमणि जैसे कई दूसरे हैं जो कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सके.

ग्रामीण विद्या केंद्रम (एक गांव का स्कूल) के एक शिक्षक बिंदु नारायणन ने कहा, “पिछले दो सालों में पलाकोली और मारकावु के करीब 20 छात्रों को कक्षा 11 में प्रवेश नहीं मिला.”

दोनों बस्तियों के लोग पनिया समुदाय के हैं. दिव्यमणि कहती हैं कि जिन छात्राओं को प्रवेश नहीं मिलता है वे ज्यादातर घर पर रहना पसंद करती हैं. जबकि पुरुष छात्र दिहाड़ी मजदूरी के लिए जाते हैं.

इस असमानता ने छात्रों और अभिभावकों को पिछले साल 28 दिनों तक विरोध करने के लिए मजबूर किया था. यह मांग करते हुए कि सरकार सीटों की संख्या में वृद्धि करे और आदिवासी छात्रों के साथ स्कूल और उच्च शिक्षा में व्यवस्थित भेदभाव को रोके. पिछले साल वायनाड जिले के सुल्तान बत्तेरि में पहला विरोध प्रदर्शन आदिवासी छात्रों के लिए शिक्षा प्रणाली में उचित प्रतिनिधित्व के लिए सरकारी हस्तक्षेप की मांग थी.

आदिवासी गोथरा महासभा (AGMS) के तहत आदिवासी और दलित युवाओं के एक समूह आदि शक्ति समर स्कूल ने सुल्तान बत्तेरि की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया. अब जब विरोध प्रदर्शन बंद हो गया है तो संघर्ष अन्य रूपों में जारी है. इस साल अक्टूबर में कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे के निवारण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मंत्री के राधाकृष्णन को एक ज्ञापन सौंपा.

यह आंकड़े यह सब दिखाते हैं

2013-14 से 2020-21 तक वायनाड जिले में अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए आवेदन करने वाली सीटों की संख्या और प्रवेश पाने वाले छात्रों की संख्या और छूटे हुए छात्रों की संख्या के बीच असमानता देखी गई.

गीतानंदन ने TNM को बताया, “अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए अपर्याप्त सीट आवंटन के कारण हर साल कम से कम 500 छात्रों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. इस साल 11वीं कक्षा में प्रवेश प्रक्रिया चल रही है और कितने छात्रों को सीटों से वंचित किया गया है यह तो प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही स्पष्ट होगा.”

बात सिर्फ सीटों की संख्या की नहीं है बल्कि यह भी है कि जिस तरह से सीटों को विभिन्न धाराओं के लिए विभाजित किया जाता है जो छात्रों को प्रभावित करता है. कार्यकर्ताओं के मुताबिक बड़ी संख्या में आदिवासी छात्र मानविकी लेना पसंद करते हैं. जबकि मानविकी स्ट्रीम में सिर्फ 158 सीटें ही उपलब्ध हैं. जबकि कॉमर्स के लिए सीटों की संख्या 159 और विज्ञान के लिए 212 है. लेकिन सिर्फ कुछ आदिवासी छात्र ही साइंस स्ट्रीम में प्रवेश लेना पसंद करते हैं.

बोर्ड परीक्षा के माध्यम से कक्षा 10 पास करने वाले छात्रों के अलावा कुछ ऐसे भी हैं जो राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान से उत्तीर्ण होते हैं. आदिवासी छात्रों के लिए अवसरों से भी इनकार किया जाता है क्योंकि वायनाड जिले में सिर्फ कुछ औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) हैं.

आदिशक्ति समर स्कूल की स्टेट कोऑर्डिनेटर मैरी लिडिया, जो आदिवासी छात्रों के साथ काम करती है टीएनएम को बताती है, “वायनाड में छात्रों के लिए सीटों की कमी से इनकार करने के मुद्दे पर लंबे समय से चर्चा की गई है. हालांकि मुख्य आवंटन के बाद आदिवासी छात्रों के लिए 2,000 सीटें अलग रखी गई हैं और बड़ी संख्या में सीटों को सामान्य वर्ग में बदल दिया जाता है.“

सरकार उन एसटी छात्रों के लिए स्पॉट अलॉटमेंट करती है जिन्हें सामान्य प्रवेश प्रक्रिया के माध्यम से उच्च अध्ययन के लिए प्रवेश नहीं मिलता है. हालांकि स्पॉट आवंटन के बाद भी एसटी छात्रों के स्कोर को निजी कॉलेजों में पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है. जबकि कई विभिन्न कारणों से शिक्षा छोड़ने को मजबूर होते हैं.

इस अंतर को कैसे दूर करें

उच्च माध्यमिक विद्यालयों में जहां आदिवासी छात्रों की संख्या अधिक है कार्यकर्ता उनके लिए एक अलग बैच की मांग करते हैं. इस अनुरोध के साथ 2020 में उच्च माध्यमिक निदेशालय को एक पत्र प्रस्तुत किया गया था. मंत्री को ज्ञापन में उठाई गई मुख्य मांगें हैं:

आवंटन के प्रथम चरण में अनुसूचित जनजाति के छात्रों का प्रवेश सुनिश्चित किया जाए.

एससी/एसटी विभाग के अंतर्गत मॉडल आवासीय विद्यालयों (MRS) में सिर्फ 30-35 छात्र हैं. इसे बढ़ाकर 60 किया जाए और एमआरएस में मानविकी, कॉर्मस और विज्ञान के बैच खोले जाएं.

एसटी विभाग को वायनाड जिले में डे स्कॉलर बैच इस तरह से शुरू करना चाहिए जिससे एमआरएस का कामकाज प्रभावित न हो. इसके लिए अस्थाई तौर पर शिक्षकों की नियुक्ति की जाए.

शिक्षा एवं उच्च माध्यमिक निदेशालय को निर्देश दिया जाए कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए अनिवार्य रूप से आरक्षित सीटों को अनुसूचित जनजाति के छात्रों का प्रवेश समाप्त होने के बाद ही सामान्य वर्ग के लिए दिया जाए.

(Image Credits: Real News Kerala)

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