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केरल: आदिवासी इलाकों से दो महीने में सामने आए छह आत्महत्या के मामले

केरल के तिरुवनन्तपुरम जिले में कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने ग्रामीण जिले में आदिवासी बस्तियों में यौन शोषण पीड़ितों के बीच कथित आत्महत्याओं में वृद्धि पर ध्यान दिया है. जबकि नई ग्रामीण एसपी दिव्या वी गोपीनाथ ने इन मौतों पर अपने संबंधित अधीनस्थों से रिपोर्ट मांगी है.

आबकारी विभाग ने आदिवासी युवाओं के बीच जागरूकता अभियान शुरू करने के लिए बातचीत शुरू की है क्योंकि यह देखा गया है कि इनमें से कई मौतों में मादक द्रव्यों का सेवन भी एक कारक था.

मंगलवार को विथुरा में एक 18 वर्षीय दलित महिला की कथित तौर पर फांसी लगाकर जान दे दी, जब उसे अपने चार साल के प्रेमी द्वारा ठगा हुआ महसूस हुआ था. हालांकि पुलिस ने मामले में उसके प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया है.

इसी तरह, विथुरा पुलिस ने पिछले महीने दो युवकों को पिछड़े समुदायों की दो नाबालिग लड़कियों का यौन शोषण करने और आख़िर में उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

पीड़ितों में से एक के माता-पिता ने अब आरोप लगाया है कि उनकी बेटी के उत्पीड़क ने उसे मादक द्रव्यों का सेवन करने वाला भी बना दिया था.

दलित और आदिवासी युवाओं के बीच काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता धन्या रमन ने कहा कि पिछले दो महीनों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के युवाओं के बीच आत्महत्या के प्रयास के आठ मामले सामने आए हैं. इनमें से छह की मौत हो गई और दो बच गए. मरने वालों में एक 17 वर्षीय लड़का भी शामिल है.

धन्या रमन ने कहा, “लड़कियों के मामले में यौन शोषण एक कारक है जो उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है. वहीं लड़कों के मामले में हमें संदेह है कि मादक द्रव्यों के सेवन के कारण मानसिक समस्याएं थीं.”

उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है कि अन्य क्षेत्रों के नशा तस्कर आदिवासी युवाओं को नशे के जाल में फंसा रहे हैं.

हाल ही में हुई मौतों में से ज्यादातर पालोड और विथुरा पुलिस थाना क्षेत्र में दर्ज की गई हैं. 192 आदिवासी बस्ती कॉलोनियों के साथ पालोड पुलिस स्टेशन की सीमा सबसे कमजोर क्षेत्र है. उन्होंने कहा कि इन सभी कॉलोनियों को नियमित रूप से कवर करना कानून लागू करने वालों या कार्यकर्ताओं के लिए एक मुश्किल काम है.

धन्या रमन ने कहा कि शुक्रवार को उन्होंने आबकारी मंत्री एम वी गोविंदन मास्टर से संपर्क किया, जो इन क्षेत्रों में आदिवासी युवाओं को लक्षित नशा विरोधी अभियान शुरू करने के लिए सहमत हो गए हैं.

उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि पिछले दो वर्षों के दौरान महामारी ने बच्चों को उनके घरों तक सीमित कर दिया था, जिससे उनके दिमाग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.”

स्कूलों में साथियों के साथ नियमित बातचीत और शिक्षकों के साथ परामर्श सत्र उन्हें तनाव दूर करने में मदद करते हैं. लेकिन पिछले दो वर्षों के दौरान बच्चों के साथ ये सब नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि यह आत्महत्याओं की संख्या में खतरनाक वृद्धि का एक कारण हो सकता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए एसपी दिव्या वी गोपीनाथ ने कहा कि इनमें से ज्यादातर मामले ग्रामीण जिले में कार्यभार संभालने से पहले के हैं. हालांकि, उन्होंने संबंधित अधिकारियों को हाल के दिनों में रिपोर्ट किए गए इसी तरह के मामलों के बारे में विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.

उन्होंने कहा, “जब मैं उन रिपोर्टों को पढ़ूंगी तो पुलिस निश्चित रूप से इस मुद्दे के समाधान के लिए कदम उठाएगी.”

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